17 मार्च, 2015
15 मार्च, 2015
कतरनें
ईमान पर
बेईमान कहता
शोभा न देता |
सुख व् दुःख
जीवन के पहलू
जीने न देते |
काटे ना कटे
दिवस व रजनी
देख सजनी |
दिवस व रजनी
देख सजनी |
लज्जा गहना
है हर महिला का
नहीं भुलाना |
विनम्र आँखें
मधुर सी मुस्कान
उसकी ही है |
है हर महिला का
नहीं भुलाना |
विनम्र आँखें
मधुर सी मुस्कान
उसकी ही है |
बालों की शोभा
मोगरे का गजरा
प्रियतमा का |
पानी आँखों का
है नूर चहरे का
मन मोहता |
कुछ विचार
कतरनें पन्नों की
व्यर्थ लगते |
मोगरे का गजरा
प्रियतमा का |
पानी आँखों का
है नूर चहरे का
मन मोहता |
कुछ विचार
कतरनें पन्नों की
व्यर्थ लगते |
जल व थल
लिए हाथ में हाथ
साथ रहते |
सेतु हो जातीं
सागर की उर्मियाँ
जल थल में |
लिए हाथ में हाथ
साथ रहते |
सेतु हो जातीं
सागर की उर्मियाँ
जल थल में |
12 मार्च, 2015
मैंने क्या पाया
कनखियों की सौगातें
जब भी याद आएं
तुझे अधिक पास पाएं
यही नजदीकियां
यादों में बसी हुई हैं
तुझसे मैंने क्या पाया
कैसे तुझे बताऊँ
प्यार तुझी से सीखा
यह तक बता न पाऊँ
भावों की प्रवणता
तुझसे बाँट न पाऊँ
मुझमें ही कहीं कमीं है
हर बात कह न पाऊँ
प्यार की गहराई में
इतनी डूब जाऊं
शब्द नहीं मिल पाते
मन में ही रह जाते
मन में ही रह जाते
इशारे भी कम पड़ जाते
मनोभाव् जताने को |
आशा
10 मार्च, 2015
08 मार्च, 2015
कितना कठिन
कितना कठिन
गुत्थी सुलझाना
सुलझाने का
मार्ग खोजना
जिस पर चल
निष्कर्ष खोजना
आत्मसात फिर
उस को करना
हैं सभी दूर
एक आम आदमीं से
हैं कल्पना मात्र
जो स्वप्नों में ही देते साथ
चन्द लोगों की बपोती
हैं सब सुख आज
जीवन भार हुआ आज
तभी आत्महत्या के
होते अक्सर प्रयास
पर वे सब भी
बिफल होते आज
गुत्थी ना कल सुलझी
और ना ही सुलझ पाएगी
आशा
07 मार्च, 2015
04 मार्च, 2015
विजया
बसी अंग अंग
फागुनी पवन संग
प्रसाद भोले का जान |
मनमौजी बना जाती
मन में बसती
उसे तरंगित करती
आनंद से भरती |
आनंद से भरती |
कभी लगती चुम्बक सी
खुद की और खींचती
चहु और रंग रूहानी होता
खिलखिलाने का मन होता |
पर न जाने क्यूं
उदासी अपना डेरा जमाती
रोना बंद न होता
तो कभी हंसने का दौरा पड़ता |
तो कभी हंसने का दौरा पड़ता |
बेसमय सोना हसना हंसाना
संयम का कोई न ठिकाना
एक ही कार्य की पुनरावृत्ति
विजया का मजा देती |
पर भोले का प्रसाद
भंग की सौगात
प्रसाद न रह जाता
भंग की सौगात
प्रसाद न रह जाता
नशे में बदलने लगता |
जी का जंजाल हो भंग
मन की शान्ति हरती
जीवन अस्तव्यस्त होता
नशे की आदत में बदलता |
जब कदम उस और जाते
विजया विजया न रहती
जीवन अस्तव्यस्त होता
नशे की आदत में बदलता |
जब कदम उस और जाते
विजया विजया न रहती
भंग का गोला हो जाती
कितनी बेमानी होजाती |
आशा
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