01 अप्रैल, 2015
31 मार्च, 2015
28 मार्च, 2015
आगमन उसका

बजी थाली आई खुशहाली
आया पालना घर में
सोहर गाईं छटी पुजवाई
नेगाचार कियेआँगन में |
एक परी सी आई बिटिया
इस छोटे से घर में
आँखों में अंजन
गालों पर डिम्पल
ठोड़ी पर लगा डिठोना
कर देता मन चंचल |
भाव घनेरे आनन पर
जागती सोती अँखियाँ
मुस्कान कभी अधरों पर |
खोजी उसने सुख की गलियाँ
उन पर कदम बढाए
बजती पैरों में पैजनियाँ |
जब भी झनकार सुनाई देती
अदभुद प्रसन्नता होती
मीठी तोतली वाणी उसकी
जीवन में रंग भरती |
ना जाने कब बड़ी हो गई
डोली में बैठ ससुराल चली
झूला खाली कर गई
घर सूना सूना लगत उसके बिना
आशा
झूला खाली कर गई
घर सूना सूना लगत उसके बिना
आशा
26 मार्च, 2015
बेमौसम बरसात
उमढ घुमड़ घटाएं छाईं
बिजली कड़की आसमान में
पास के टीन शेड पर
शोर हुआ गिरते ओलों का|
बेमौसम बरसात में
दिन में रात का भान हुआ
बाहर जा कर क्या देखते
लाईट गई अन्धकार हुआ |
यह कैसा अनर्थ हुआआज
खेतों में खड़ी पकी फसलें
मार प्रकृति की न सह पाईं
धरती पर बिछ सी गईं |
बेचारा बेबस किसान
देख रहा अश्रु पूरित नेत्रों से
फसल की यह बरबादी
ईश्वर ने यह क्या सजा दी
सोच रहा मन ही मन में
पूरी फसल नष्ट हो गई
सारी महनत व्यर्थ हो गई
अगले साल कैसे क्या होगा
जबअनाज बोना था
बूँद बूँद जल को तरसे थे
ताल तलैया सब सूखे
नल कूप के स्रोत सूखे |
त्राहि त्राहि तब भी मची थी
पर तब प्रभु ने सुनी प्रार्थना
जल से पूरित बदरा आये
धरती की क्षुधा शांत हो गई |
पर बेमौसम बरसात ने
अधिक ही कष्ट दे दिया
जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ
जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ
मंहगाई को अवसर मिला |
24 मार्च, 2015
ज्ञान हारा प्रेम से
था राज्य कंस का
बेबस थे नर नार
त्राहि त्राही मची हुई थी
नगरिया मथुरा थी बेहाल |
कान्हां गए वहां
माता पिता को छुड़वाने
कारागार से मुक्त कराने
बदला कंस से लेने |
हुई ब्रज की गलियाँ सूनी
अभाव कृष्ण का खलने लगा
न रही रौनक वहां
और न कोई उत्सव |
विरह वेदना में डूबी
कृशकाय गोपियाँ होने लगीं
अश्रुओं की बाढ़ में
तन मन अपना खोने लगीं |
कृष्ण के एक मित्र ने
नाम था जिनका उद्धव
समझाने का उनको बीड़ा
अपने ऊपर ओढ़ा |
किया प्रस्थान गोकुल को
लिए ज्ञान का झोला
जितना भी वे समझाते
कृष्ण का दाइत्व बताते
ज्ञान की गंगा बहाते
ज्ञान की गंगा बहाते
गोप गोपियाँ सह न पाते |
ज्ञान सारा धरा रह गया
किसी ने भी न सुनना चाहा
एक ही मांग थी उनकी
उनका कान्हा लौटा लाओ
झूटा आश्वासन नहीं चाहिए
कान्हा को ले आओ
द्वेत अद्वेत से क्या लेना देना
कान्हां के बिन गोकुल सूना |
ज्ञान केवल सतही था
जड़ें प्रेम की थीं गहरी
ज्ञान प्रेम से हारा
और तिरोहित हो गया |
ज्ञान केवल सतही था
जड़ें प्रेम की थीं गहरी
ज्ञान प्रेम से हारा
और तिरोहित हो गया |
आशा
23 मार्च, 2015
जय दुर्गा मैया
शेर पर सवार
देवी दुर्गा माँ |
ममतामयी
आया है तेरा दास
इच्छा पूर्ति को |
वर दायनी
तुम हो अन्न पूर्णा
जय माँ अम्बे |
जय माँ अम्बे |
शरणागत
कहता बार बार
जय माता की |
है तेरा दास
पूर्ण कीजे आशाएं
हे दुर्गा मैया |
जीवन आस
तुमसे ही है माता
हे जगदम्बे |
आशा मन में
झूमते भक्त तेरे
भक्ति में डूबे |
हैं भक्त तेरे |
मांगे सुहाग
चूड़ियाँ भर हाथ
गोदी में लाल |
कहता बार बार
जय माता की |
है तेरा दास
पूर्ण कीजे आशाएं
हे दुर्गा मैया |
जीवन आस
तुमसे ही है माता
हे जगदम्बे |
आशा मन में
झूमते भक्त तेरे
भक्ति में डूबे |
हे जग माता
भव बाधा हरो माँहैं भक्त तेरे |
मांगे सुहाग
चूड़ियाँ भर हाथ
गोदी में लाल |
हे दुर्गे माँ
भव बाधा हरो माँ
हैं भक्त तेरे |
आशा
आशा
21 मार्च, 2015
शैशव का वैभव
कितना विशाल
उससे अनुराग
अतुलनीय लगाव
सदा ही मन में बसता
जब कभी तस्वीरें
धुंधली होने लगतीं
देर नहीं लगती उन पर से
धूल झाड़ने में
फिर से उनको
करीने से सजाने में
हर अक्स महत्त्व रखता है
बेजान कोई नहीं
विषद स्थान घेरे है
मन के मंदिर में
छोटी सी कागज की कश्ती
जब जल के संग बहती
सड़क पर कंचों की खनक्
गुड्डे गुड़िया का विवाह
रस्मों कसमों का निवाह
भूल नहीं पाती
वैभवपूर्ण बचपन में गुम
उस संचित पूंजी को
मन में छिपाए रखती हूँ
एकांत में संचित वैभव को
बारम्बार निरखती हूँ |
बारम्बार निरखती हूँ |
आशा
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