कमियों को मैं क्या गिनाऊँ
लगता असंभव गणन उनका
हल कोई नहीं दीखता
उनसे उबरने का
यही क्या कम है
की अहसास मुझे है
उनसे उत्पन्न समस्याओं का
जब से है वे साथ
उथल पुथल मन में रहती
बेचेनी बनी रहती
हल तब भी न मिलते
किये प्रयास व्यर्थ जाते
समय बिगड़ता फिर भी
तोड़ उनका न निकला
यही बात मुझे सालती
कुछ कर नहीं पाती
कितना भी अच्छा सोचूँ
कहीं चूक हो ही जाती
रेत हाथों से फिसल जाती
कमियाँ हावी होने लगतीं
पश्च्याताप सच्चे मन से
होता तोड़ माना
वह भी न कर पाती
मन मसोस कर रह जाती |
आशा