06 मई, 2016
04 मई, 2016
अंधी भीड़
जुटी भीड़ एक जलसे में
एक समूह ने कुछ कहा
चर्चा पर चर्चा हुई
आनन् फानन मेंबात बढी
जाने क्या बात हो गई
आपस में तकरार हो गई
पहले बहस फिर हाथापाई
फिर पत्थरबाजी शुरूहुई
पत्थर से पत्थर टकराए
चिंगारियां उड़ने लगीं
कब चिंगारी आग में बदली
कोई नहीं जान पाया
भागमभाग ऐसी मची
कोई भागा कोई गिरा
लड़ाई झगड़ा भूल गए
पलायन में ही हित समझ
बाहर आ कर दम लिया
दमकल आई आग बुझाई
बड़ा हादसा टल गया
जन हानि ना हुई होना था जो हुआ
मजा जलसे का किरकिरा हुआ |
आशा
03 मई, 2016
01 मई, 2016
है आज मजदूर दिवस
है आज मजदूर दिवस
क्यूं न पूरी मजदूरी दें
श्रमिक का दिल न दुखाएं
श्रमिक को सम्मान दें |
वह दिन भर खटता रहता
जो कुछ पाता घर चलाता
काम न मिले तो झुंझलाता
सोचता आज चूल्हा कैसे जले |
असंतोष उसे मधुशाला ले जाता
कुटेव का आदी हो जाया
दरिद्र देवता देख लेता घर
वहीं अपने पैर जमाता |
आएदिन झगड़े फसाद
ढाने लगते क़यामत
सारा जीवन यूं ही गुजरता
अभावमय जीवन होजाता |
समस्या है बहुत विकट
कोई हल न निकला आज तक
आज हम प्रण लें
किसी का हक न मारें
पूरी मजदूरी देंगे
मजदूर का सम्मान करेंगे |
आशा
30 अप्रैल, 2016
तन्हाई
तन्हाई के आलम में
खुद के ही कमरे में
अकेलापन खलने लगा
कुछ करने का मन न हुआ
बेहद अकेला जो हो गया
खोने लगा विचारो में
सजने लगे स्वप्न दृष्टि पटल पर
गुजरने लगे चित्र एक के बाद एक
रंगीन स्वप्न होने लगे
मेरा साया भी मुझसे हुआ दूर
मैं सोचने पर बाध्य हुआ
ऐसा क्या हो गया
जो सबसे दूर होता गया
जाने कब प्यार के बंधन टूटे
लगा बंधन मुक्त हुआ
पर यह मेरी गलतफ़हमी थी
जाने वाले चले गए
मैं नितांत अकेला रह गया
अब मैं मेरा कमरा और तन्हाई
मुझे रास नहीं आती
बीते कल में ले जाती
वे यादें बनी सहारा
वे भी धूमिल होने लगीं
जिन्दगी बोझ लगने लगी
मैं सिमटने लगा अपने आप में
तलाशने लगा वह यामिनी
जहां सुकून से रह पाऊँ
जीने का सहारा खोज पाऊँ
बीते कल के स्वप्नों में |
आशा
खुद के ही कमरे में
अकेलापन खलने लगा
कुछ करने का मन न हुआ
बेहद अकेला जो हो गया
खोने लगा विचारो में
सजने लगे स्वप्न दृष्टि पटल पर
गुजरने लगे चित्र एक के बाद एक
रंगीन स्वप्न होने लगे
मेरा साया भी मुझसे हुआ दूर
मैं सोचने पर बाध्य हुआ
ऐसा क्या हो गया
जो सबसे दूर होता गया
जाने कब प्यार के बंधन टूटे
लगा बंधन मुक्त हुआ
पर यह मेरी गलतफ़हमी थी
जाने वाले चले गए
मैं नितांत अकेला रह गया
अब मैं मेरा कमरा और तन्हाई
मुझे रास नहीं आती
बीते कल में ले जाती
वे यादें बनी सहारा
वे भी धूमिल होने लगीं
जिन्दगी बोझ लगने लगी
मैं सिमटने लगा अपने आप में
तलाशने लगा वह यामिनी
जहां सुकून से रह पाऊँ
जीने का सहारा खोज पाऊँ
बीते कल के स्वप्नों में |
आशा
28 अप्रैल, 2016
चंद विचार बिखरे बिखरे
बेचैन न हो धर धीरज धरा की तरह
सब कष्ट सहन करना धरती की तरह
गुण सहनशीलता का होगा विकसित
महक जिसकी होगी हरीतिमा की तरह |
दीन दुनिया से है दूर तो क्या
अंतस की आवाज तो सुन सकता है
उस पर ही यदि अडिग रहा
उसका ही अनुकरण किया
तब आत्म विश्वास जाग्रत होगा
वही सफलता की कुंजी होगा |
मां की ममता पिता का दुलार
है अद्भुद ममता का संसार
हूँ बहुत भाग्यशाली देखो ना
भरपूर पाया मैंने दौनों का ही प्यार |
अरे मूर्ख मां की शक्ति को जान
अरे नादान भक्ति की शक्ति को पहचान
जाने कब मां प्रसन्न हो तुझ पर
निर्मल मन से उसे ही अपना मान |
हूँ उदास कि गम से की है यारी
पर मनवा वहां हो जाता भारी
जो आती सुगंध मंद मलय के संग
वही क्यारी हो जाती प्यारी |
विरासत अपनी भूले आज भी परतंत्र हैं
कोई परिवर्तन नहीं भीड़ में फंसे हैं
शासन भीअसफल रहा उसे सहेजाने में
कर्तव्य बोध सुप्त ही रहा अधिकार मांग रहे हैं |
आशा
शा
सब कष्ट सहन करना धरती की तरह
गुण सहनशीलता का होगा विकसित
महक जिसकी होगी हरीतिमा की तरह |
दीन दुनिया से है दूर तो क्या
अंतस की आवाज तो सुन सकता है
उस पर ही यदि अडिग रहा
उसका ही अनुकरण किया
तब आत्म विश्वास जाग्रत होगा
वही सफलता की कुंजी होगा |
मां की ममता पिता का दुलार
है अद्भुद ममता का संसार
हूँ बहुत भाग्यशाली देखो ना
भरपूर पाया मैंने दौनों का ही प्यार |
अरे मूर्ख मां की शक्ति को जान
अरे नादान भक्ति की शक्ति को पहचान
जाने कब मां प्रसन्न हो तुझ पर
निर्मल मन से उसे ही अपना मान |
हूँ उदास कि गम से की है यारी
पर मनवा वहां हो जाता भारी
जो आती सुगंध मंद मलय के संग
वही क्यारी हो जाती प्यारी |
विरासत अपनी भूले आज भी परतंत्र हैं
कोई परिवर्तन नहीं भीड़ में फंसे हैं
शासन भीअसफल रहा उसे सहेजाने में
कर्तव्य बोध सुप्त ही रहा अधिकार मांग रहे हैं |
आशा
शा
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