योग्य धनुर्धर होने को
हो पूर्ण ध्यान निशाने पर
लक्ष्य भेदन तभी संभव
जब एकाग्र हो मन निरंतर
शिक्षा थी गुरू की यही
स्वीकार जिसे शिद्दत से किया
ध्यान तभी केन्द्रित हुआ
तीर निशाने पर लगा
है अति विशिष्ट
गुरू शिष्य का नाता
काल पुरातन से आज तक
कोई भ्रमित न इससे हुआ
जैसे पहले महत्त्व था इसका
आज भी वह कम न हुआ
|शिक्षा जिससे भी मिले
शिरोधार्य शिष्य करे
तभी पूर्णता का भास् हो
शिष्य का विकास हो |
आशा