16 दिसंबर, 2016

कपोत




-हे विहग शांति के प्रतीक
श्याम श्वेत सन्देश वाहक
प्रथम रश्मि के साथ आए
कुनकुनी धू  साथ लाए
जाने कहाँ से उड़ कर आते 
पंक्तिबद्ध दाना चुगते 
बिना बात तकरार न करते
गुटरगूं करते  पंख फड़फड़ाते  
गर्दन हिला संतुष्टि दर्शाते
नियमित तुम्हारा आना
आकर रोज दाना खाना
दाना समाप्त होते ही
फुर्र से कहीं उड़ जाना
यह सब तुमने सीखा कहाँ से
ना तो कभी समय चूकते
ना ही पंक्ती आगे पीछे
 पंखों की गति तक होती एकसी
आगे पीछे ऊपर नीचे
बिलकुल अनुशासित सैना जैसे
नियमबद्ध आचरण तुम्हारा
उनको प्रेरित करता होगा
उन्होंने कवायत करना
तुमसे ही सीखा  होगा
समूह में तुम्हारा रहना
आपस का मेलमिलाप भाईचारा
है अनुपम उदाहरण अनुशासन का
कहलाते तुम शान्ति के प्रतीक
और  शान्ति के परिचायक
जाने कब आते कहीं चले जाते
हम यह भी जान न पाते
तुम कहाँ गुम हो जाते
 तुम रात्रिकालीन विश्राम करते
कहीं किसी वृक्ष पर
किसी  कोटर में
कभी गुटुरगूं करते
प्रातःकाल के इन्तजार में
हम भी प्रतीक्षारत रहते
तुम्हारा इंतज़ार करते
दाना डाल प्रतीक्षा करते 
प्रतिदिन राह तुम्हारी देखते |
आशा   

14 दिसंबर, 2016

रिश्ते


जाने अनजाने जाने कब
ये रिश्ते अनूठे
इतने अन्तरंग हुए 
जान नहीं पाया आज तक 
वे गले का हार हो  गए |
जब भी वे करीब होते 
दूरी का भय बना रहता 
दूर होते ही उनसे
बेचैनी का  आलम होता |
हैं कितने अनमोल वे
अब परख पाया उन्हें
हो गए इतने विशिष्ट
कि हमराज मेरे  बन गए |
 
 आशा





12 दिसंबर, 2016

कौन सा राज




कौन सा राज छुपा है
उसके बहानों में
देने से क्या लाभ ताने
सत्य तक 
न पहंच पाने में
भरोसे पर दुनिया टिकी है
जब इसे स्वीकारोगे
मानो या न मानो
तभी विश्वास कर पाओगे
उसने क्या गुनगुनाया
कौन सा गीत गाया
तभी जान पाओगे  
क्या बात छिपा रखी थी उसने
अपने  रचाए गानों में |
आशा




11 दिसंबर, 2016

हाईकू



१-
छू पद रज
शिला हुई अहिल्या
राम कृपा से |
२-
चढ़ने न दे
लकड़ी  की है  नौका
माझी नकारे |
३-
पैर पखारे
माझी पार उतारे
पुण्याशीश ले |
४-
राम वन में
सिया अनुज संग
पाप मिटाएं |
५-
सीता हरण
राम सह न पाए
हुए अधीर |
६-
वह राज क्या
उसके साथ गया
खुल न सका |
आशा



10 दिसंबर, 2016

अपनी क्षमता जान




गुजर गया बीता कल
अपनी यादें छोड़ कर
उसकी याद न कर
मन को रख सबल |
सक्रीय हो जा आज
वर्तमान में जी ले
क्या होगा कल
इसकी किसको खबर |
संयत कर मन अपना
न जाने कैसा होगा
आनेवाले कल का
भविष्य फल |
न भविष्य न भूत काल
है वह वर्तमान
आज में जी करअपना
भविष्य सुनिश्चित कर ले |
न कर सीमा का उल्लंघन
अपनी क्षमता जान
सदुपयोग जीवन का कर
आशा का दामन थाम |
आशा

07 दिसंबर, 2016

आखिर कब तक



अर्श से फर्श तक
बन सी गई कच्ची सड़क
 है अंतहीन काँटों से भरी
न जाने जाएगी कहाँ तक
फिर भी भरी है
आकांक्षाओं से
जगह जगह राहों में
छोटे बड़े ठेले लगे हैं
कहीं कहीं मेले भी हैं 
चाहे जब इच्छाएं 
सर उठाने लगती हैं
कहीं हैं विश्राम गृह
रुक जाने का भी
 मन होता है
पर मन  असंतुष्ट
कुछ करने नहीं देता
उसकी कातरता देख
 दारुण दुःख होता
यही बड़ी समस्या है
उलझन युक्त मन की
विलुप्त होती खुशियाँ
सिमटने लगतीं
भार जिन्दगी लगती
भटकती यहाँ वहां
मुक्ति की तलाश में
है व्यर्थ यह भी सोचना
अन्धकार में हाथ मारना
अनजाने मार्ग पर  चल कर
उसपार पहुँचाने की कल्पना
तक अधर में लटक जाती
कभी माया कदम रोकती
तभी सुकून से दूरी होती
आखिर कब तक झूलना होगा
इस जन्म मरण के झूले पर
कब पार हो पाएगी 
वह अंतहीन कच्ची डगर |

आशा