केवल अधिकारों की देते हैं जानकारी 
पर कर्तव्यविहीन हो रही सोच हमारी 
खुल कर बोलना है अधिकार हमारा 
कब बोलना, कहाँ बोलना व विवादों को 
देना निमंत्रण क्या दुरुपयोग नहीं ! 
हँसना हँसाना लगता तो है भला 
पर कटु भाषण और व्यंगाबाण 
मन पर करते प्रहार 
संतुलित आचरण रहा तो रिश्ते संवरें 
पर बिना बात के ताने 
मन की सुख शान्ति हर ले जाएँ 
है यह स्वयं का विवेक 
हम किस मार्ग पर जाएँ 
कहीं संस्कारविहीन नहीं हुए हों 
अच्छी सोच हो खिले पुष्पों की तरह 
जो खुद तो महके ही अपने 
आस पास को भी चमन बना दे
खुशबू दिग्दिगंत तक जाए ! 
आशा सक्सेना 




