17 फ़रवरी, 2018

क्षणिकाएं



















१-खेतों में आई बहार 
पौधों ने किया नव श्रंगार 
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता |



२-रंगों का सम्मलेन 
 मोहित करता मेरा मन 
या कोई मारीचिका  सा  
भ्रमित करता उपवन   |

३-दीपक से दीपक जलाओ 
कलुष मन का भूल जाओ
प्रेम से गले लगाओ
 है यही संदेशआज का 
हिलमिल कर त्यौहार मनाओ |

४-दीप जलाओ तम हरो 
हे विष्णु प्रिया धन वर्षा करो 
मंहगाई की मार से 
कुछ तो रक्षा करो |
५- शमा के जलाते ही रौशनी होने लगी
परवाने भी कम नहीं
हुए तत्पर आत्मोत्सर्ग के लिए |

आशा


13 फ़रवरी, 2018

हाईकू

                                                      १-     विरक्त भाव
                                                           चेहरे पे  थकन
                                                     गहन सोच

२-नीर भारत
 हिया मेरा कम्पित
छलके नैन

३-वह  सोचती 
तुलसी का बिरवा
 यादों में खोती 

४-थीं  उदास वे 
पुस्तकों का सान्निध्य 
उदासी दूर 

५-तेरी चाहत
 बनी पैरों की बड़ी 
बढ़ने न दे 

६-वह सक्षम
 निर्भय व साहसी 
नारी सबल 

७-नारी सबला
 अवला न समझो
है आधुनिका 

८-ये कैसे रिश्ते 
राह चलते बने 
वे प्रिय लगे 

आशा






                                                             














09 फ़रवरी, 2018

वैलेंटाइन डे ?

बार बार  हजार बार 
सोचती रह जाती हूँ 
किसीआयोजन के लिए 
कोई दिन ही निर्धारित क्यों 
है उदाहरण  वैलेंटाइन डे का 
क्या प्रेम के इजहार के लिए भी 
दिन निर्धारण है जरूरी  ?
इसके लिए पहले या बाद में 
अपना विचार बताना
 गलत है क्या
देने के लिए लाल गुलाब ही क्यों?
कोई दूसरा नहीं  क्यों  ?
यदि ना मिल पाए तो क्या 
रह जाए प्यार अधूरा ?
प्यार के प्रदर्शन के लिए 
मोहताज होना  विशिष्ट दिन के लिए
क्या गलत नहीं ?
न जाने क्या आकर्षण है 
बाह्य प्रथाओं को अपनाने में 
और अनुगमन करने में
सारी सीमाएं तोड़ देने में |
आशा


08 फ़रवरी, 2018

फूल गुलाब का

                                                      उसने ढूंडा फूल गुलाब का 
  पुष्प तो मिला पर लाल नहीं     
सोचा लाल ही क्यूँ  ?



हैं इतने सारे पर गुलाब नहीं 
जो मिले वही सही 
पुष्प गुच्छ में एक भी लाल न था 
शायद लोगों में पहले सा 
प्यार अब न रहा | 
आशा

31 जनवरी, 2018

कुनकुनी धूप








सर्दी का मौसम
 लगता बड़ा प्यारा
इसी प्रलोभन ने 
 मुझे मारा
कुनकुनी धूप 
और हलकी सी सर्दी
मन न हो
 घर का आँगन
 छोड़ने का
वहाँ बैठना
 और बुनाई करना
जो कभी शौक
 रहा करता था
अब हुआ दूर मुझसे
 मजबूरी में
बहुत खलने लगा है
 अब मुझको
पर किससे अपनी 
व्यथा साझा करूँ
कोई नहीं मिलता
 अपना सा मुझे
मन मार कर 
रह जाती हूँ
कोई नहीं जो
 मदद कर पाए |


आशा

28 जनवरी, 2018

क्षणिकाएं







तुमसे लगाया नेह अनूठा
अपना आपा खो  बैठी
आकांक्षा मन में रही 
कान्हां तुम मेरे हो 
मुझ में हो बस मेरे ही रहो |

आतुर नयन तेरे दर्शन को 
कर्ण मधुर ध्वनि सुनने को 
दीपक जलाया ध्यान लगाया 
कब मनोरथ पूर्ण हो |

आपसी तालमेल देखा आज हुए सम्मलेन में
छिपी हुई प्रतिभा दिखी छोटे बड़े हर वर्ग में
है यहाँ अपनापन भाईचारा ना कि कोई दिखावा
मन होने लगा अनंग इस पर्व में |

 आँखें नम हो रही हैं यह सब तो होता ही रहता है
बहुत कीमती हैं ये आंसू जिन्हें बहाना है मना
ये बचाएं शहीदों के लिए उन पर ही लुटाना
कतरा कतरा अश्रुओं का है अनमोल खजाना |

खिडकी से भीतर झांकती 
   धीरेसे कदम पीछे हटाती 
यह मेरा नहीं है ना ही कभी होगा 
यह कमरा है उसका  उसी का रहेगा
आशा

27 जनवरी, 2018

कतरनें



१-इन्द्रधनुषी
सात रगों से सजी
सृष्टि हमारी

 २-हरी धरती
नीला है आसमान
अद्भुत संगम

3-विभिन्न  रंग
दिखाते सौन्दर्य का
संजोग होता

4-सात  रंगों की
छटा निराली होती
किसी कृति की

५-शिक्षित बेटी
सँवारे परिवार
लाए समृद्धि

६ -सुर न ताल
है केवल धमाल
कर्ण कटु है

७-लगाएं पौधे
हरियाली बढ़ती
मन मोहती

८-सत्य की खोज
कहाँ है असंभव
भक्तों के लिए

९-कहीं न मिले
धरा और गगन
दीखते साथ

१०-सूखी पहाड़ी
छोटी सी है तलैया
घन गरजे

11-उमंग भरी
है मन की साधना
सबसे खरी


आशा