07 मार्च, 2018

फेरे



पुष्प की सुरभि से 
हुआ भ्रमर आकर्षित
 पहले लगाते चक्कर पर चक्कर
तब कहीं पुष्प का 
बंधन होता प्रगाढ़ 
है महत्व फेरों का 
जन्म से अंत तक 
पहले बालक मां के
आसपास घूमता 
चक्कर लगाता व रिझाता
जब तक वह गोद में न ले 
नहीं तो रूठा बना रहता 
जब बचपन समाप्त होता
युवा वय को प्राप्त होता 
फेरों के संपन्न हुए बिना
विवाह अधूरा  रहता 
हर फेरा बंधा किसी वचन से 
तभी  वादा खिलाफी 
बाधक होती सफल विवाह में 
तुलसी आँवला बरगद पीपल 
पूजे जाते समय-समय पर 
फिर परिक्रमा लोग देते 
मनोकामना पूर्ती पर 
 परिक्रमा देते  लोग
 प्रभु तेरे चारों ओर
तेरा हाथ हो सब के ऊपर
सृष्टि में हर जीव का
होता चक्र निर्धारित
दिन के बाद रात का आगमन 
ग्रह उपग्रह करते फेरे 
अगर भटक जाएं 
तब न जाने क्या हो ?
जन्म मृत्यु भी किसी के 
जीवन चक्र में बँधे  हैं 
हैं प्रकृति के नियंता 
सुचारू सृष्टी संचालन के लिए 
खुद के बनाए नियमों से बँधे हैं
जलचर थलचर नभचर
सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं
अपने जीवन के लिए |



आशा























04 मार्च, 2018

हाईकू

१-भीगा मौसम 
पर वाली चींटियाँ 
घर बाहर 

२-गाय  भीगी सी
 बैठी सड़क पर
मार जल की

३-ख़ुशी न हुई
क्रोध बहुत आया
गुरूर देख

४-डर  समाया
 मनवा  में अगर
नहीं जाएगा

५-प्राण पखेरू
उड़  चले व्योम में
दर खोजते

६-होली के रंग
खेले प्रियतम से 
उदासी कम

7-मेरी बेटी
है फूल सी कौमल
नजरार ना

८-मेरी सहेली
समय सहायक
सब से स्नेही 
आशा

27 फ़रवरी, 2018

क्यूं हो उदास


क्यूं हो उदास

सांता क्यूं हो उदास आज 
कुछ थके थके से हो 
है यह प्रभाव मौसम का 
या बढ़ती हुई उम्र का
अरे तुम्हारा थैला भी 
पहले से छोटा है 
मंहगाई के आलम  में
 क्या उपहारों का टोटा है
मनोभाव भी यहाँ 
लोगों के बदलने लगे हैं 
प्रेम प्यार दुलार सभी
धन से तुलने लगे हैं
मंहगाई का है यह प्रभाव 
या हुआ आस्था का अभाव 
न जाने कितने सवाल 
मन में उठने लगे हैं
कहाँ गया वह प्रेमभाव 
क्यूं बढ़ने लगा है अलगाव 
भाई भाई से दूर हो रहे 
अपने आप में सिमटने लगे 
क्या तुम पर भी हुआ है वार 
आज पनपते अलगाव का 
या है केवल मन का भ्रम 
या है मंहगाई का प्रभाव 
पर मन बार बार कहता है 
हैप्पी क्रिसमस मेरी क्रिसमस
आज के इस दौर में
खुशियाँ बांटे मनाएं क्रिसमस
इस कठिनाई के दौर में
तुम आये यही बहुत है 
प्यारा सा तोहफा लाए 
मेरे लिए यही अमूल्य  है |
आशा


26 फ़रवरी, 2018

हाईकू




1-ना वे आ पाए
ना मुझे आने दिया
यह क्या किया

2-चैन न पाए
मनवा को सताए
बैरन त्रिया

३-कब क्यों कहाँ
प्रश्न अनेक यहाँ
ना मिले हल

४-बुद्धि चाहती  
पर मन न लगे  
कैसे हों हल
५-है क्या जरूरी
सब कुछ हल हो
ना किया तो क्या

६-प्रश्न ही प्रश्न 
दिखाई दिए स्वप्न 
उत्तर नहीं

७-क्या आवश्यक 
सब  हल करना
ना हुए तो क्या

8-होली के रंग
खेले  प्रियतम से
उदासी दूर

आशा







22 फ़रवरी, 2018

प्रश्न अनेक


लगा प्रश्नों का अम्बार 
देखकर आने लगा बुखार 
सोचते विचारते 
बिगड़े कई साल 
अनजान सड़क कंटकों से भरी
जाने कैसे कदम बढ़ने लगे 
न तो कोई कारण उधर जाने का 
ना ही कोई बाट जोहता 
अनेक प्रश्न फैले पाए 
शतरंज की बिसात पर
 होता था एक ही विकल्प 
जीत अथवा हार 
प्रश्न अनेक और उत्तर एक 
प्रश्नों की लम्बी श्रंखला से
सत्य परक तथ्यों के हल 
न था सरल खोजना 
बहुत कठिनाई से
उस तक पहुंच पाते 
प्रश्न बहुत आसान लगते 
लगन धैर्य व् साहस की 
है नितांत आवश्यकता
क्या है जरूरी ?
हर कार्य में सफलता मिले 
पर हारने से पलायन 
करना क्या है आवश्यक ?

आशा




21 फ़रवरी, 2018

बड़ी मछली छोटी को खाती


सृष्टि के इस भव सागर में
बड़ी छोटी विविध रंगों की मछलियाँ
 बड़ी चतुर सुजान अपना भोजन
 छोटी को बनाती  वह बेचारी
 कहीं भी सर अपना  छुपाती 
खोजी निगाहें ढूँढ ही लेतीं 
तब भी उनका पेट न भरता
 दया प्रेम उनमें न होता 
छोटी  सोचती ही रह जातीं
 कैसे करें अपना बचाव
सिर्फ तरकीबें सोचती पर 
पर  व्यर्थ सारे प्रयत्न होते
 कभी किसी नौका का सहारा लेतीं 
सागर की उत्तंग लहरों से  टकरा कर
 नौका खुद ही नष्ट  हो जाती 
यही सच है कि
बड़ी मछली छोटी को निगल जाती  |
आशा


17 फ़रवरी, 2018

क्षणिकाएं



















१-खेतों में आई बहार 
पौधों ने किया नव श्रंगार 
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता |



२-रंगों का सम्मलेन 
 मोहित करता मेरा मन 
या कोई मारीचिका  सा  
भ्रमित करता उपवन   |

३-दीपक से दीपक जलाओ 
कलुष मन का भूल जाओ
प्रेम से गले लगाओ
 है यही संदेशआज का 
हिलमिल कर त्यौहार मनाओ |

४-दीप जलाओ तम हरो 
हे विष्णु प्रिया धन वर्षा करो 
मंहगाई की मार से 
कुछ तो रक्षा करो |
५- शमा के जलाते ही रौशनी होने लगी
परवाने भी कम नहीं
हुए तत्पर आत्मोत्सर्ग के लिए |

आशा