क्यूं बंद
किया
लक्ष्मण
रेखा के घेरे मै
कारण तक नहीं समझाया
और वन को
प्रस्थान किया
यह भी नहीं
सोचा
मैं भी हूँ एक
मनुष्य
स्वतन्त्रता
है अधिकार मेरा
यदि आवश्कता
हुई
अपने को
बचाना जानती हूं
पर शायद
यहीं मै गलत थी
अपनी रक्षा
कर न सकी
रावण से
ख़ुद को बचा न सकी
मैं कमजोर
थी अब समझ गयी हूं
यदि
तुम्हारा कहा सुन लिया
होता
दहलीज पार ना करती
अनर्गल
बातों से दुखित
तुम्हें ना करती
हा राम हा राम की आवाज सुन
राम तक
पहुंचने के लिए
कष्ट में हैं राम सोच
सहायतार्थ जाने के लिए
तुम्हें बाध्य ना
किया होता
रावण को दान देने के लिए
लक्ष्मण रेखा पार न करती
दहलीज पार करने का
दुस्साहस न किया होता
यह दुर्दशा
नहीं होती
विछोह भी न
सहना पड़ता
अग्नि
परीक्षा से न गुजरना पड़ता
धोबी के कटु
वचनों से
मन भी छलनी
ना होता
क्या था सही
ओर क्या गलत
अब समझ पा
रही हूं
इसी दुःख का कर रही हूं निदान
धरती से
जन्मी थी
फिर धरती
में समा रही हूं |
आशा