मन ही तो है कागज़ की नाव सा
बहाव के साथ बहता
तेज बहाव के साथ वही राह पकड़ता
डगमग डगमग करता |
या तराजू के काँटों सा
बहाव के साथ बहता
तेज बहाव के साथ वही राह पकड़ता
डगमग डगमग करता |
या तराजू के काँटों सा
पल में तोला पल में माशा
है अजब तमाशा इस का
कहने को तो है पूरा
नियंत्रित
पर कोई भी वादा नहीं
किसी से
चाहे जब परिवर्तित होता
कभी प्यार से सराबोर
होता
कभी वितृष्ण का स्त्राव होता
कहीं स्थाईत्व नजर न
आता
बारबार कदम डगमगाते
मन का निर्देश पाकर
मन का निर्देश पाकर
कभी हिलने का नाम न
लेते
एक ही जगह थम से जाते
कितने भी यत्न किये
पर समझ न पाए
पर समझ न पाए
है क्या इसकी मंशा ?
है स्वतंत्र उड़ान का
पक्षधर
कोई बाँध न पाया
इसको
कहने को तो बहुत
किया संयत
फिर भी कमीं रही पूरी न
हुई
तराजू का काँटा कभी
इधर
तो कभी उधर हुआ
हार कर एक ही
निष्कर्ष पर पहुंचे
है आखिर मन ही इस
काया में
जिसे कोई बाँध न पाया
इसकी थाह न ले
पाया |