06 जुलाई, 2020

गुरू को नमन


                                       आज है गुरू पूर्णिमा 
सभी गुरूओं  को है  नमन मेरा 
सागर से गहरा कोई नहीं
माँ के दिल की गहराई 
किसी ने नापी नहीं
माँ की ममता की कोई सानी  नहीं
हमारी भलाई किसी ने जानी नहीं
केवल माँ ने ही हाथ आगे बढाए
जैसी भी  हूँ मुझे थामने के लिए
प्रथम गुरू माँ  को  मेरा प्रणाम
मेरा जीवन सवारने को
 सही राह दिखाने के लिए
खुश हाल जिन्दगी जीने के लिए
 मेरे मार्ग दर्शक को मेरा  नमन   
है आज गुरू पूर्णिमा मेरे गुरू को
मेरा शत शत नमन |   
आशा

05 जुलाई, 2020

आगे पीछे की क्या सोचूँ ?



खेल ही  में समय बिताया
कभी सोचा नहीं भविष्य का  
वर्तमान में जीने के लिए
बीते कल को याद न किया |
केवल स्वप्नों में डूबी  रही
वर्तमान की चमक दमक  ने
 इस तरह मोहा मुझे
आगे का मार्ग  भटक गई |
बहुत चाहा फिर भी  
 आगे प्रगति कर  न सकी 
कोई मददगार न मिला
 सही मार्ग दिखाने को |
कूपमंडूक सी  सिमटी रही
खुद के आसपास अपने आप में
कूए से बाहर आ न सकी
उसे ही अपनी दुनिया समझी |
आखिर दुनिया है  कैसी
कितने रंग छाए है उसमें
जब देखा ही नहीं
तब क्यूँ दोष दू किसी को  |
वर्तमान करता आकर्षित
उसमें  ही  रहना चाहती हूँ
श्वासों  का क्या ठिकाना
                                                                  आगे पीछे की क्या सोचूँ ?
                                                आशा

04 जुलाई, 2020

कुछ लम्हे तो चाहिए





कुछ लम्हें तो  चाहिए
 तुम्हारे  दीदार के लिए
तुम्हें जानने  के लिए
वह भी ऐसे कि उनमें
किसी का दखल न हो |
मुझे पसंद नहीं है
 किसी की दखलंदाजी
तुम्हारे मेरे  बीच आकर   
गलतफैमी बढाने की
 बातों को तूल देने की | 
होगी जब आवश्यकता  
  कानों के कच्चे नहीं
 हम खुद ही सक्षम हैं
आपस में उलझा हुआ पेच सुलझाने में |  
मुझे चाहिए समय
 खुद सोचने दो  
दूसरों की बैसाखी ले कर 
 कब तक चलूंगी |
 दूसरों की सलाह
 होगी कितनी कारगर ?
है विश्वास मुझे खुद पर
 कभी गलत नहीं सोचूंगी |
किसी की गलत सलाह 
पर कान न धरूंगी 
 सही निर्णय को
 सिर माथे रखूंगी |
आशा है सभी समस्याएं
अपने आप समाप्त होंगी
मेरे तुम्हारे तालमेल पर  
लोग मन में ईर्ष्या करेंगे |
आशा   

02 जुलाई, 2020

चौमासा


  घिर आई काली कजरारी बदरिया  
आपस में टकराए बादल
चमकी चमचम  बिजुरिया
 मौसम हुआ तरवतर चौमासे में 
धरती ने ओढी चूनर धानी  नवयौवना सी
दादुर कोयल मोर पपीहा बोले बगिया में 
मयूर  ने की अगुवाई चौमासे की 
अपने पैरों की थिरकन से |
मयूर ने पंख पसारे झूम झूम घूम कर
 नृत्य किया बागों  में 
कंठ से मधुर  स्वर निकाले
आकर्षक नयनाभिराम नृत्य प्रदर्शन में | 
 आकृष्ट किया अपनी प्रिया को 
 रंगबिरंगे फैले पंखों से
 नयनों से  की अश्रु वर्षा भी 
 उसका सान्निध्य को पाने को |
  छोटी बड़ी  बूदें जल की मोह रही मन को
मन होता नहाए तेज बारिश के पानी में 
दिल से करें  स्वागत चौमासे का |
बहनों ने सोलह श्रृंगार किये हैं 
 भरी भरी मेंहदी सजाई है पैरों और  हाथों में
पहनी है सतरंगी चूनर हाथ भर भर हरी चूड़ियाँ
जल्दी बड़ी है उन्हें अपने पीहर जाने की|
चौमासे के त्यौहार सारे  मन में गहरे ऐसे पैठे 
एक भी छोड़ना नहीं भाता मन को 
 बाट जोहती बैठी हैं वे अपने भैया  के आने की
चौमासे के त्योंहार सखियों के साथ  मनाने की | 
ईश्वर भी आराम  चाहता है चौमासे में 
बहुत थक गया  है दुनिया को चलाने में 
कुछ काल उसे भी चाहिए प्रबंधन विश्व का करने को
चौमासे के  आगे की रणनीति तय करने को |

                             आशा