09 सितंबर, 2020

बंधन ही बंधन

बंधन ही बंधन
आसपास उनका घेरा
कभी समाज का बंधन
कभी खुद पर ही
 स्वयं का नियंत्रण |
जिस ओर दृष्टि दौड़ाई
बेचैन दिल हुआ
क्या किया था मैंने ऐसा
मुझे ही सोचने को
बाध्य होना पडा |
क्या होना चाहिए था
और क्या हो गया ?
बंधनों की हर नई खेप
अब तो कर देती है
विचलित मुझे |
कौनसा मापदंड अपनाऊँ
किससे दिल का हाल बताऊँ
शायद कोई तो मुझे
समझ पाया है अब तक
या है मेरे मन का बहम |
अब बहम से दूरी चाह रही हूँ
मन के सुकून के
 बहुत नजदीक आ गई हूँ
अब तोड़ना चाहती हूँ
नहीं होते अब बंधन सहन मुझे |
जी चाहता है काटूं हर बंधन
खुले आसमान में उड़ती फिरूं
सभी बंधनों से हो कर मुक्त
खुद जियूं और जीने दूं सभी को |
मुझे भी एहसास हो
कि स्वतंत्रता है क्या
जीने का आनंद है क्या |
आशा
 

कभी सोचा न था


जिन्दगी इस हद तक
घिसटती जाएगी
फिर से गाड़ी पटरी पर
लौट न पाएगी |
हुआ है जीवन एक ऐसा  बोझा
जिसे सर पर भी उठा नहीं पाते
किसी मशीन का ही
सहारा लेना पड़ता है
 जब उससे बच निकलना चाहते |
फिर भी  सर पर से
 बोझ कम नहीं होता
क्या करें किसका सहारा लें
या खुद ही इतनी क्षमता उत्पन्न करें
पर भय बना रहता है
 कहीं देर न हो जाए
हम जहां थे वहीं खो न जाएं |

07 सितंबर, 2020

Public
भारत के नौनिहालों
क्या तुम्हें मालूम नहीं
कितनी बड़ी जिम्मेदारी
है तुम्हारे कन्धों पर
जब से दुनिया में पहला कदम रखा
सब की निगाहें टिकी हैं तुम पर
आशा भरी निगाहों से एक तक
निहार रहे हैं तुमको |
तुम्हारी कर्मठता को
तहे दिल से स्वीकारा है सब ने
तभी तो लोहा मान रहे
तुम्हारे हर कार्य की |
गर्व से उन्नत हैं
मस्तक मां बहनों के
तुम्हारे जन्म दाताओं के
हर देश वासी की वाणी पर
गीत तुम्हारे होते हैं |
हमें है गर्व तुम्हारे कृत्यों पर
मिलते हुए सम्मानों पर
सत्य की विजय पर
भारत के नौनिहालों पर |
आशा