Add caption |
क्यूँ अकेले खड़े निहार रहे
मौन व्रत धारण किये
मूक मुख मंडल पर
मुखर होने को बेकल
शब्दों को पहरा मिला |
दिल पहले तो बेचैन हुआ
फिर तुम्हें समझना चाहा
ऐसी उथल पुथल है
आखिर मन में क्यूँ ?
हो इतने बेवस लाचार क्यूँ ?
शायद यही सोच रहता है
हर पल तुम्हारे मन में |
पर क्या कभी सोचा है
इस दुनिया में हैं
अनगिनत ऐसे इंसान
बुरी स्तिथी है जिनकी
पर जिन्दगी से हार नहीं मानी है
अभी भी जीने की तमन्ना बाक़ी है |
उनसे प्रेरणा मिलती है
पल भर के क्षण भंगुर जीवन में
प्रभु के सिवार किससे आशा करें
खुद जिए और जीने दें औरों को |
आशा