11 सितंबर, 2020

क्या सोच रहे हो ?

 

 


Add caption

क्यूँ अकेले खड़े निहार रहे

मौन व्रत धारण किये

मूक मुख मंडल पर  

मुखर होने को बेकल

शब्दों को पहरा मिला |

दिल पहले तो बेचैन हुआ

फिर तुम्हें समझना चाहा

ऐसी उथल पुथल है

आखिर मन में क्यूँ  ?

हो इतने बेवस लाचार क्यूँ ?

शायद  यही सोच रहता है

हर पल  तुम्हारे मन में |

पर क्या कभी सोचा है

इस दुनिया में हैं

अनगिनत ऐसे  इंसान

 बुरी स्तिथी  है जिनकी

पर जिन्दगी से हार नहीं मानी है

अभी भी जीने की तमन्ना बाक़ी है | 

उनसे प्रेरणा मिलती है

पल भर के क्षण भंगुर जीवन में

प्रभु के सिवार किससे  आशा करें

खुद जिए और जीने दें  औरों को |

आशा  

 

10 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    13/09/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को    "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों"   (चर्चा अंक-3823)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार सहित धन्यवाद सर मेरी रचना शामिल करने के लिए |

      हटाएं
  3. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिये |

    जवाब देंहटाएं
  4. मस्त खड़े हैं झील के किनारे और ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं ! बिना बात उन्हें मायूस बता रही हैं ! कुदरत की नेमतों का मज़ा भी तो उठाना चाहिए या नहीं ? सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: