Add caption |
क्यूँ अकेले खड़े निहार रहे
मौन व्रत धारण किये
मूक मुख मंडल पर
मुखर होने को बेकल
शब्दों को पहरा मिला |
दिल पहले तो बेचैन हुआ
फिर तुम्हें समझना चाहा
ऐसी उथल पुथल है
आखिर मन में क्यूँ ?
हो इतने बेवस लाचार क्यूँ ?
शायद यही सोच रहता है
हर पल तुम्हारे मन में |
पर क्या कभी सोचा है
इस दुनिया में हैं
अनगिनत ऐसे इंसान
बुरी स्तिथी है जिनकी
पर जिन्दगी से हार नहीं मानी है
अभी भी जीने की तमन्ना बाक़ी है |
उनसे प्रेरणा मिलती है
पल भर के क्षण भंगुर जीवन में
प्रभु के सिवार किससे आशा करें
खुद जिए और जीने दें औरों को |
आशा
बढिया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
13/09/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सूचना हेतु आभार कुलदीप जी |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों" (चर्चा अंक-3823) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आभार सहित धन्यवाद सर मेरी रचना शामिल करने के लिए |
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिये |
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंमस्त खड़े हैं झील के किनारे और ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं ! बिना बात उन्हें मायूस बता रही हैं ! कुदरत की नेमतों का मज़ा भी तो उठाना चाहिए या नहीं ? सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएं