कभी तुम ने सोचा नहीं
बताया नहीं है क्या तुम्हारे मन में
क्या चाहते हो मुझ से |
अनगिनत आकांक्षाएं अपेक्षाएं
मुझे भी तुम से होगी
कोई तो अपेक्षा तुमसे
कभी जानना चाहा नहीं |
हो कितने निजी स्वार्थ में लिप्त
कभी सोचतो लेते मैंने तो
प्यार किया था तुमसे
शायद तुम्हें अब याद न हो
जब होती विरह वेदना
तब पता चलता तुम्हे |
कभी तुम ने सोचा नहीं
बताया नहीं है क्या तुम्हारे मन में
क्या चाहते हो मुझ से |
अनगिनत आकांक्षाएं अपेक्षाएं
मुझे भी तुम से होगी
कोई तो अपेक्षा तुमसे
कभी जानना चाहा नहीं |
हो कितने निजी स्वार्थ में लिप्त
कभी सोचतो लेते मैंने तो
प्यार किया था तुमसे
शायद तुम्हें अब याद न हो
जब होती विरह वेदना
तब पता चलता तुम्हे |
सूचना के लिए आभार यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
सुप्रभात
हटाएंहिन्दी दिवस पर आपको भी शुभकामनाएं |मेरी रचना की टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
बढ़िया रचना ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पनी के लिए |
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