14 सितंबर, 2020

वृक्ष

 
 
 
 

वर्षों से एक ही स्थान पर
 बनकर समय के परिचायक
 बिना कोई प्रतिक्रया दिए 
चुप चुप से मौन खड़े हो
| गरमी में तेज धुप सही 
पर विरोध नहीं दर्शाया 
वर्षा हुई जब तेज
 तन भीगा मन भी भीगा 
तुमने कोई प्रभाव नहीं दिखाया | 
जैसे थे वैसे ही खड़े रहे 
 एक सजग प्रहरी की तरह 
जाने कितने पक्षियों का आसरा बने 
 एक पालक की तरह |
 प्रातः काल जब कलरव सुनाई देता
 कानों में रस घोलता 
एक अनोखा एहसास मन में होता 
चेहरा प्रसन्न खिला खिला रहता 
 सच में तुमने एक महान कार्य किया है
 हमने तो तुमसे शिक्षा ली है
 कैसी भी परिस्थिती हो
 मोर्चे पर खड़े रहेंगे
 पीठ दे कर भागेगे नहीं |

8 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव में दृढ़ता, संकल्प, समर्पण की मिसाल वृक्ष से बढ़ कर और कुछ हो ही नहीं सकती ! एक वृक्ष ही होता है जो सिर्फ सुख ही सुख देता है इंसान को बदले में कभी कुछ नहीं माँगता उससे ! बहुत सुन्दर रचना !

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद साधना प्यारी सी टिप्पणी के लिए |

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 15 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  3. सच है प्राकृति अपने हर अंग से कुछ न कुछ सिखाती है अगर हम सीखना चाहें तो ... सुन्दर रचना है ...

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  4. प्रेरणादायी रचना.....और प्रकृति का उदाहरण देना इस रचना को सार्थक बना रही है। जी, बेहतरीन।

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  5. सुप्रभात
    टिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |

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