22 दिसंबर, 2020
इंतज़ार
17 दिसंबर, 2020
क्यूँ हुए विचलित
क्यूँ हुए विचलित
किसी ने तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया
या मन की गहराई में
कोई बुरा ख्याल आया |
बैठे हो गुमसुम बेजान प्रस्तर प्रतिमा से
मन में अशांति की दुकान लिए
यह क्या बात हुई दो बोल मीठे बोलो
मन की ग्रंथि खोलो |
कुछ तो हल निकलेगा
जब मुस्कान अधरों पर आएगी
समस्या का निदान भी
निकल ही आएगा |
मन क्लेश से न भरेगा
दो शब्द मीठे मिश्री से उसके
जब तुम्हारे कानों में पड़ेगे
वही मिठास मन में घोलेंगे |
तुम्हारी आत्मा तृप्त हो जाएगी
स्वयम को तुम सहज अनुभव करोगे
तुम्हारे मन का मलाल भी
तिरोहित हो जाएगा |
इस बिचलन से मुक्त हो
जीवन प्रसन्नता से जी सकोगे
सामाजिक प्राणी बनोगे
उदासी से दूर बिंदास जीवन जियोगे |
आशा
15 दिसंबर, 2020
ओ समय ठहरो ज़रा
ओ समय ठहरो ज़रा
मुझे भी साथ ले चलो
अभी कुछ काम शेष रहे हैं
उन्हें पूर्ण कर लेने दो |
जब कोई काम शेष न रहेगा
मन सुकून से रह सकेगा
फिर लौट न पाऊँगी
इससे नहीं परहेज मुझे |
पर कुछ अवकाश तो चाहिए
विचार विमर्श करने को
समय यदि मिल जाएगा
कोई गिला शिकवा न रहेगा
मन का भार उतर जाएगा |
वह शांत हो जाएगा
निश्चिन्त हो कर रह सकूंगी
सुख चैन की जिन्दगी जी सकूंगी
प्रभु भक्ति में लीन रहूँगी |
आशा
13 दिसंबर, 2020
यह मैंने क्या किया ?
हो गया निश्प्रह निष्क्रीय प्राणी
बन कर नियति के हाथों का खिलोना
मन मसोस कर रह गया |
इतना कमजोर पहले कभी न था
कितनी भी समस्याएँ आईं
उनसे मुंह न मोड़ा
डट कर सामना किया उनका
पीठ फेर उनसे कभी भागा नहीं |
इस बार जाने क्यों
किसी ने सचेत न किया
मैं अंतरात्मा की आवाज
तक न सुन पाया |
यह भूल हुई कैसे अनजाने में
समझ नहीं पाया
अब पश्च्याताप हो रहा है
यह मैंने क्या किया ?
आशा