हम साहब तुम नौकर
हम साहब तुम नौकर हमारे
यह भाव कभी ना सफल हुआ है
जब भी देखा इस दृष्टिसे
मन में रोष पैदा हुआ है |
कैसी सोच उभरी थी मन में
अब सोच कर शर्मिन्दा हूँ
काश पहले से ही सचेत होते
झूठा अहम् न पालते
तभी जमीन पर टिक पाते
आँखें मिला कर जी पाते |
जब तक कुर्सी पर रहे आसीन
पहले विचार मन में होते
पर पद छिनते ही
सभी जमीन पर आजाते |
जब पहले भी अंतर न था जब बच्चे थे
फिर यह भाव उपजा ही क्यों
क्या यह तंग दिल होने का संकेत नहीं
ईर्षालू पैदा हुए हैं इस जरासे विचार से |
यह विचार था मिथ्या अभिमान
अब समझ में आया
पर अब पछताने से लाभ क्या
बीता समय लौट कर न आया |
आशा
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