कब कहा है
किसीने कब कहा
कहता गया
प्यार से या रोष से
मालूम नहीं
चेहरे के भाव ही
साफ नहीं हैं
जब आते जाते हैं
दीखते नहीं
मन की इच्छा चाहे
आजाए आगे
कितनी बलवती
हो एहसास
बदले तेवर का
भाव मन का
अंदाज न लगता
लगाव लिए
या प्यार में लिपटा
सराबोर है
भीगा तन मन है
बड़ी समस्या
लगाव अजीब सा
मन के भाव
छूटे बाण मुंह से
निकल रहे
जब मन को भेदते
चलनी होता
दिल टूटे कांच सा
बिखर जाता
प्यार लगाव न होता
कुछ और हो जाता |
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-09-2021) को चर्चा मंच "राजभाषा के 72 साल : आज भी वही सवाल ?" (चर्चा अंक-4188) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंआभार मेरी रचना की सूचना के लिए |
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the information
हटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |