14 सितंबर, 2021

भाव मन के


 

कब कहा है

किसीने कब कहा

कहता गया 

प्यार से या रोष से

मालूम  नहीं

चेहरे के भाव ही

साफ नहीं हैं 

जब आते जाते हैं

दीखते नहीं  

मन की इच्छा चाहे

 आजाए आगे

कितनी बलवती

हो एहसास 

बदले तेवर का 

  भाव मन का  

अंदाज न लगता

लगाव लिए  

या प्यार में लिपटा  

सराबोर है  

भीगा तन मन है

बड़ी समस्या  

लगाव  अजीब सा 

 मन के भाव  

छूटे बाण मुंह  से 

निकल रहे  

जब मन को भेदते

चलनी होता

दिल टूटे कांच सा

 बिखर  जाता

प्यार लगाव न होता  

कुछ और  हो जाता |

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-09-2021) को चर्चा मंच       "राजभाषा के 72 साल : आज भी वही सवाल ?"   (चर्चा अंक-4188)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हिन्दी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. सुप्रभात
      आभार मेरी रचना की सूचना के लिए |
















      |

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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