12 जनवरी, 2022

हूँ कितनी अकेली


 

हूँ कितनी अकेली

अब तक जान न पाई

मेरे मन में क्या है

खुद पहचान नहीं पाई |

मेरा झुकाव किस ओर है

यही ख्याल हिलता डुलता रहा

 स्थाईत्व नहीं आया मेरे सोच में

 अपने को स्थिर नहीं कर पाई  |

मैं क्या हूँ? क्या चाहती हूँ ?

ना  मैं समझी न किसी ने समझाया   

तभी मनमानी करना ही पसंद मुझे 

मन की ही करती हूँ जिद्दी हो गई  हूँ |

अब लग रहा है कहीं असामाजिक

तो नहीं हो गई हूँ

अपने में कोई बदलाव न कर  

खुश नहीं हूँ फिर भी |

क्या कोई तरकीब नहीं जिससे

समय के साथ चल पाने से

मन को सुकून मिल पाएगा  

खुशी आएगी खुद को सामाजिक बना लेने से |

आशा 

11 जनवरी, 2022

नयन सजल हैं


               नयन सजल हैं

दिल भी भराभरा
हुआ संतप्त मन
जीवन में क्या रखा है |
नेत्रों में अश्रुओं का बहना
उनका बहाव नदिया सा
थमने का नाम नहीं लेता
मन को कितना समझाऊँ |
बीते कल को कैसे भुलाऊँ
जब भी विचार मन में आता
उसकी शान्ति हर ले जाता
जितना भी दूर रहूँ उससे
मन का दुःख जीने नहीं देता |
उलझन छोटी हो या बड़ी
कोई निष्कर्ष नजर न आता
यहीं हार जीवन की होती
मरण का मन हो जाता |
जब कोई अपना चला जाता
मन विचलित हो जाता
बहुत समय लगता भुलाने में
जीवन मरण की कहानी रह जाती |
कैसे मन को समझाऊँ
यही रीत दुनिया की है कैसे जताऊँ
हार गई दिल को समझा कर
क्षणिक जीवन है जानती हूँ |
किसी का भविष्य कोई नहीं जानता
यह भी मालूम है
फिर यह विचलन कैसा है
यही मानव कमजोरी है |
आशा
Smita Shrivastava, Phoolan Datta and 13 others
4 Comments
Like
Comment
Share

4 Comments

  • Dilip Kumar
    प्रणाम।
    • Like
    • Reply
    • 22h
    Active
    Asha Lata Saxena replied
     
    1 Reply
  • Smita Shrivastava
    शाश्वत सत्य को दर्शाती भावपूर्ण रचना
    • Like
    • Reply
    • 21h
    • Like
    • Reply
    • 21h