था इंतज़ार दुनिया में बेसब्री से
वह आए जब पहली बार झुले में
थाली बजी ढोल बजे इस अवसर
पर
खुशियाँ मनाई सोहर गीत गाए
सब ने |
घुटनों चले उंगली पकड़ी चलना सिखाया
गिरते पड़ते उठना सीखा
चार कदम चलना सीखा |
सबने बड़ी ख़ुशियाँ मनाई
पांच वर्ष में पट्टी पूजन
करवाया
फिर शाला में भर्ती करवाया
जीवन की गाड़ी आगे बढ़ने लगी |
माता पिता के अरमान थे अनगिनत
वे भी पूरे ना हो सके
प्रार्थना भी नहीं सुनी प्रभु ने
उस पर दया दृष्टि भी ना दिखाई |
क्या यही भाग्य में लिखा था
उसने सब कार्यों को प्रभु के हाथ छोड़ा
अब ईश्वर का सहारा लिया
बड़ों ने आशीष दिया आत्म बोध जाग्रत हुआ |
आया है साहस खुद मैं हर समस्या को झेलने का
अब है इतना साहस उसमें भय का कोई स्थान नहीं
आत्मशक्ति जाग्रत हुई है नहीं
चाह सहारे की
अपने पैरों पर खड़ी हुई है आश्रित
नहीं किसी की |
आशा सक्सेना