20 मार्च, 2023

चंचल चपल हिरणीजैसी


                                                                चंचल चपल हिरणी जैसी

उन्मुक्त घूमती वनमण्डल में

भय नहीं किसी का उसको

यही तो घर है उसका |

किसी की वर्जना नहीं सहती

रहती बंधन मुक्त होकर 

बिंदास बने रहना था अरमान उसका

किसी की बंदिश सहना

नहीं मंजूर उसे|

यदि उसने सोच लिया

उसने सही मार्ग चुना है  

वह  सही राह पर चल रही

तब अपनी बात पर अड़ी रहती |

कभी पीछे पैर नहीं करती

चाहे कोई कितना भी रोके टोके

मन से एक बार सोचती

 फिर पलट कर नहीं देखती |

यही है आत्म विश्वास का चरम

उसका जगता उन्नयन

वह है दीन दुनिया से कोसों दूर

आज के माहोल में बिलकुल सही |

आशा सक्सेना 

था इन्तजार तुम्हारा

 





                                                          था  इंतज़ार  दुनिया में  बेसब्री से

वह  आए जब पहली बार झुले में

थाली बजी ढोल बजे इस अवसर पर

खुशियाँ मनाई सोहर गीत गाए सब ने |

घुटनों चले  उंगली पकड़ी  चलना सिखाया

गिरते पड़ते उठना सीखा

चार कदम चलना सीखा |

सबने बड़ी ख़ुशियाँ मनाई

पांच वर्ष में पट्टी पूजन करवाया

फिर शाला में भर्ती करवाया

जीवन की गाड़ी आगे बढ़ने लगी  |

माता पिता के अरमान थे अनगिनत 

 वे भी पूरे ना हो सके

 प्रार्थना भी नहीं सुनी प्रभु  ने  

उस पर दया दृष्टि भी ना  दिखाई |

क्या यही भाग्य में लिखा था

उसने  सब कार्यों को प्रभु के हाथ छोड़ा

अब ईश्वर का सहारा लिया

बड़ों  ने आशीष दिया आत्म बोध जाग्रत हुआ |

आया है  साहस खुद मैं हर  समस्या को झेलने का

 अब है इतना साहस उसमें भय  का कोई स्थान नहीं  

आत्मशक्ति जाग्रत हुई है नहीं चाह सहारे  की

अपने पैरों पर खड़ी हुई है आश्रित नहीं किसी की |

आशा सक्सेना 

19 मार्च, 2023

तुम ना समझे मुझे







हम साथ साथ रहे

मैंने तुम्हें जाना 

तुम्हारी फितरत को पहचाना 

पर तुम ना समझे मुझे||

है मेरी आवश्यकता क्या 

किन  बातों  के पास आकर 

अच्छा नहीं लगता मुझे 

तुमसे क्या अपेक्षा रखती हूँ 

तुम पूरी कर पाओगे या नहीं 

कभी सोचने लगती हूँ 

क्या कुछ अधिक ही 

चाहा तुमसे मैंने 

जब चाह पूरी नहीं होती 

तुमको बेवफ़ा का नाम दे  दिया मैंने 

खुद की खुशी को भी 

अपना नहीं समझ पाती 

पर किसीसे क्या शिकायर करूं 

किसी नेमुझाज्को समझा ही नहीं 

शयद यही प्रारब्ध में लिखा है मेरे |


आशा सक्सेना 


कविता का गीत बड़ा मदिर

 




कविता का गीत बड़ा मदिर

सब से मधुर सब से मीठा 

गाने के शब्द भी चुन लिए

कोमल भावों को सजाया वहां |

 मधुर धुन उसकी गुनगुनाती

एक आकर्षण में बहती जाती

कलकल कर बहती नदिया सी

लहरों पर स्वरों का  संगम होता |

यही विशेषता है उन दौनों में

एक ही ताल पर शब्दों का थिरकना

मनभावन रूप में सजाए जाना एक नया

 रूप दिखाई देता गीत जीवंत हो जाता |

आशा सक्सेना    

गीत प्रेम के गाए

 





गीत प्रेम के गाए

कवि ने जब तक जीवन में शांति रही

पर हुआ विचलित मन उसका

 जब महांमारी ने पैर पसारे |

जब मुसीबत आई देश पर

आगे की पंक्ती में खडा रहा

 अपनी रचनाओं से देश के वीर

सपूतों का साहस बढाया |

एक ऐसा कार्य किया जिसने

 मनोवल  बढाया इतना कि वे जुटे

पूरी लगन से देश की रक्षा के लिए

यह रहा  महत्व पूर्ण इतना

 देशवासियों ने  दिल से सराहा

जो भी लिखा देश हित के लिए

उनको सराहा गया पूरे मन से |

यही विशेषता रही वीर रस की रचनाओं में

जब शांति का माहौल बना

बड़ा परिवर्तन दिखने लगा रचनाओं से

कवि की मनोस्थिती की झलक दिखी  

 खुशहाली देश की नजर आई |

 

आशा सक्सेना

 

18 मार्च, 2023

मैं अकेली कैसे





जब भी तुम्हारी बातें चलती

मन में उदासी छाती  

बहुत रिक्तता जीवन में भरती

मुझे लगता मैंने तुम्हें खो दिया है |

यह है दुनिया की रीत 

यही समझाया है सबने सब साथ हैं

मैं अकेली कैसे जब तुम्हारा प्यार साथ है

 मुझे भय कैसा आखें भर भर आती हैं |

मुझे सहारा मिलता है तुम्हारी यादों का

ज़रा सा ध्यान बिचलित होते ही

खो जाती हूँ बीती  यादों मैं  |

आशा सक्सेना                 

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17 मार्च, 2023

आखिर कब तक



 

 

 


 आखिर कब तक तुम्हारे पीछे चक्कर लगाता 

अपने मन की एक ना सुनता

 तुम से बहुत आशा रखी थी

यहीं भूल हुई मुझसे|

 यदि किसी बड़े का कहा माना होता

पर अंध भक्ति नहीं की होती

दिमाग का भी उपयोग किया होता

अपनी सोच समझ को एक ताले मेंबंद  ना रखा  होता

जो फल उस समस्या का होता

अपने हित में ही होता |

जो अपना हमें  समझते हैं  

 सही सलाह देते है

बिना बात ना  उलझन होती 

जीवन में शांति से जीते |

कोई समस्या सरल नहीं होती

दोनो ने मिल  हल कर ली होती

मस्तिष्क पर बोझ ना होता

उलझनों में अग्नि के शोले ना  भड़कते |

दौनों के मन में संतुलन बना रहता

कोई नही  उलझता अकारण

अपनी अपनी राह चुन लेता 

उसी पर अग्रसर होता |

 आशा सक्सेना