चंचल चपल हिरणी जैसी
उन्मुक्त घूमती वनमण्डल में
भय नहीं किसी का उसको
यही तो घर है उसका |
किसी की वर्जना नहीं सहती
रहती बंधन मुक्त होकर
बिंदास बने रहना था अरमान उसका
किसी की बंदिश सहना
नहीं मंजूर उसे|
यदि उसने सोच लिया
उसने सही मार्ग चुना है
वह सही राह पर चल रही
तब अपनी बात पर अड़ी रहती |
कभी पीछे पैर नहीं करती
चाहे कोई कितना भी रोके टोके
मन से एक बार सोचती
फिर पलट कर नहीं देखती |
यही है आत्म विश्वास का चरम
उसका जगता उन्नयन
वह है दीन दुनिया से कोसों दूर
आज के माहोल में बिलकुल सही |