हर ओरजल ही जल
जलमग्न हुए नदी किनारे के
कच्चे मकान |
बड़े कष्टों से बनाया था जिनको
वह देखती रही असहाय सी
कुछ भी उसके हाथों में न था
केवल देखने के सिवाय |
तिनका तिनका जमा किया सामान को
बहुत परिश्रम किया था
एक एक सामान सहेजने में
मन में रोने के सिवाय कुछ ना था |
प्रकृति ने कोप ऐसा किया
जीना मुश्किल कर दिया
कभी मन ने सोचा
यह सजा तो नहीं
ईश्वर प्रदत्त
नोई भूल यो नहीं हुई
आज वन्दना में |
आशा सक्सेना
सुख दुःख
सब याद करते
पर दुःख से कम कोई नहीं
जितना उसे याद करते
उसे भूल नहीं पाते
सभी जानना चाहते कारण
उदासी का
कहते गम खाओ किसी से पंगा
ना लो
समझोता करना भी सीखो
खुशियों से हाथ मिलाओ
पर तुम इनसे समझोता ना कर
पाते
मन ही मन असंतुष्ट रहते
कोशिश भी करते पर असफलता
ही हाथ लगती
अपना प्रारब्ध मान इसे
गहरी उदासी में खो जाते
तभी मन की आवाज सुनते
फिर से कोशिशों में जुटते
मन कहता कभी उसकी भी सुनो
फिरसे प्रयत्नों में जुट
जाते
और सफलता पाते
कभी हारने को तैयार
नहीं होते
यही सीखा है समाज से आगे
बढ़ो
हार को नकार दो समय का
सदुपयोग करो उपहार में जीत को पल्ले से बाधो
आगे बढ़ने की ठानो सही राह
पर चलकर
सलाह को सत्कार करो |