१-हरियाली है
हरी भरी है धरा
बदला रंग
२-पर्यावरन
किसने बिगाड़ा है
क्या मनुष्य ने
३-प्रकृति ने भी
भाग लिया उसमें
मौसम बीता
४-किसने भेजी
हरियाली यहाँ है
चारो तरफ
५-जब नहाया
इस सरोवर में
हुआ प्रसन्न
६-सरोवर में
चांदनी बिछी हुई
भली लगती
आशा सक्सेना
१-हरियाली है
हरी भरी है धरा
बदला रंग
२-पर्यावरन
किसने बिगाड़ा है
क्या मनुष्य ने
३-प्रकृति ने भी
भाग लिया उसमें
मौसम बीता
४-किसने भेजी
हरियाली यहाँ है
चारो तरफ
५-जब नहाया
इस सरोवर में
हुआ प्रसन्न
६-सरोवर में
चांदनी बिछी हुई
भली लगती
आशा सक्सेना
जब दुनिया में हम आए,
रोना
बहुत आया था
जब धरती पर कदम रखा
पर अन्य सब हुए प्रसन्न
ढोलक पर सोहर गाई गई
नेग बाटे गए
मिठाई बाटी गई
पर यह भूल गए जीवन है कितना
कठिन
यह प्रसन्नता सब की है
कुछ
समय की
बचपन बीता मालूम ना पडा
रोना गाना सब चला
किशोरावस्था कब बीती ,
याद नहीं मुझको
यौवन में कदम रखते ही
जीवन की कठिनाई दिखी
अपने चारों ओर
कैसे इससे निजात पाएं .
.जीवन
को सरल बनापाएं
दिखा बहुत कठिन
कितनी सलाह
मिलीं
पर सब की समस्या
एक समान नहीं होतीं
तब प्रभु का आश्रय लिया,
इस
जीवन से मुक्ति के लिए
अब मैंने सब को रोता पाया .
खुद हुआ प्रसन्न
मुक्ति मार्ग पर जाकर कर |
आशा सक्सेना
कालीअंधेरी रात में
हम घूम रहे नजारा देख रहे
बहुत सुन्दर दिखाई देता
जुगनुओं का उड़ना यहाँ वहां |
उनकी मंद मंद चमकती दिखाई देती
उड़ने की प्रतिभा
यही आकर्षण होता
उनके जंगल में विचरण का |
जबआसमान में
तारे चमकते
जूगनू भी साथ देते
रौशनी बढ़ा देते जंगल में |
\
जब साथ चले हम कदम हुए
पर हम साया कभी न बन पाए
अधिक दूर न चल पाए
मन को खुशी ना मिल पाई |
यही रही अधूरी मन में बात
कोशिश की हम ख्याल होने की
उसमें भी सफल ना हो पाए
कभी सोच नही पाए उसी की तरह |
हर बार अलग सब से नजर आए
क्या कभी किसी के हमराज हो पाएंगे
अपने को किसी से बांधेंगे
उसके अनुरूप चल पाएँगे |
बार बार दिल को टीस सहने की
आदत हो जाएगी
पर इससे कैसे बचेंगे
हमारी सारी कोशिश व्यर्थ हो जाएगी |
आशा सक्सेना
उसने की भूल यही
उसने कोई गलत कार्य नहीं किया
यह सोचा नहीं किसी ने बताया भी
पर गंभीरता से विचार नहीं किया
उन लोगों ने भी उससे किनारा किया |
जब घर पर डाट पड़ी सब ने डराया
उसे अपनी गलती का अहसास हुआ
क्षमा मांगी सब से बार बार
यह किसकी गलती है खोजा नहीं |
आज तक अपनी भूल पर कायम रही
उसी कार्य पर अडिग रही
सब का समझाना व्यर्थ गया
जब उनका कहा नहीं माना
आगे से अब भूल नहीं होगी |
क्या हुआ जब तुमसे दूर हुआ
तुमसे पूंछा नही मन मेरा माना नहीं
अब तक कोई निराकरण ना निकल पाया
उसकी प्रतीक्षा रही हर पल |
यही कठिन समय दिखाई दिया
अब समस्या हल हो कैसे
मन बहुत पछताता है
पास आते आते हल जब दूर हो जाता है |
अब तक हल है मुझसे दूर
कभी पास आएगा या नहीं मुझे मालूम नहीं
पर बिना हल खोजे कहीं भी चैन नहीं
यही चैन मुझे जब मिल जाएगा
मुझे सुकून आ जाएगा |
आशा सक्सेना
१-वर्षा आई है
बहार बरसाई
मौसम ने
२-किसने कहा
आत्म शक्ति नहीं है
मेरे भीतर
जब मन को आई
मन खुश था
४-कविता छुए
मन की गहराई
उसके भाव
5-बचपन है
अनमोल तुम्हारा
बीते यादों में
आशा सक्सेना