देख कर उन्मुक्त उड़ान भरती चिड़िया की
हुआ अनोखा एहसास उसे
पंख फैला कर उड़ने की कला खुले
आसमान में
जागी उन्मुक्त जीवन जीने की
चाह अंतस में |
हुआ मोह भंग तोड़ दिए सारे बंधन आसपास के
हाथों के स्वर्ण कंगन उसे लगे अब हथकड़ियों
से
पैरों की पायलें लगने लगी लोहे
की बेड़ियां
यूं तो थी वह रानी स्वयं ही अपने धर की
पर रैन बसेरा लगा अब स्वर्ण पिंजरे सा |
कई बार सोचा है क्या कमी यहाँ
पर न पहुंच पाई किसी निष्कर्ष पर
ज्यों ज्यों गहराई में डूबी खोई विचारों में
उर में उठी हूँक बढी बेचैनी |
फिर याद आई छबि उन्मुक्त हो पंख फैला
कर
व्योम में उड़ती उस चिड़िया की
नहीं कोई विघ्न बाधा ना ही
कोई बंधन
हुई ईर्ष्या उसके जीवन से |
कहीं मन के किसी कौने में सोच जागा
क्या उस जैसा उन्मुक्त जीवन जीने का
अवसर उसे भी कभी मिलेगा
जी पाएगी उन्मुक्त बिंदास
जीवन |
पहले सच्चाई से थी दूर बहुत
चिड़िया के उन्मुक्त जीवन जीने के पीछे का संघर्ष
कितनी कठिनाइयों से गुजरना होता था उसे
अनगिनत समस्याओं से खुद को बचा कर
आगे का मार्ग प्रशस्त किया था उसने|
यही है वह राज जो
उड़ती चिड़िया से जो जाना है उसने
दुनिया का कोई बंधन अब बाँध
नहीं सकता
रहना है यहीं उन्मुक्त उड़ान भरना है | है |
आशा