घिसटती जाएगी
फिर से गाड़ी पटरी पर
लौट न पाएगी |
हुआ है जीवन एक ऐसा बोझा
जिसे सर पर भी उठा नहीं पाते
किसी मशीन का ही
सहारा लेना पड़ता है
जब उससे बच निकलना चाहते |
फिर भी सर पर से
बोझ कम नहीं होता
क्या करें किसका सहारा लें
या खुद ही इतनी क्षमता उत्पन्न करें
पर भय बना रहता है
कहीं देर न हो जाए
हम जहां थे वहीं खो न जाएं |