09 फ़रवरी, 2010

जन श्रुति

सुमंत पुर में एक राजा राज्य करता था |उसका बेटा बहुत सुस्त ,आलसी और निकम्मा था |उसे अत्यधिक लाड
प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया था |राजा बहुत परेशान रहने लगा |उसने अपने मंत्रियों से सलाह ली |वह अपने बेटे
को नसीहत देना चाहता था |अतः उसने अपने बेटे को घर से निकल दिया |
पहले तो राजकुमार बहुत दुखी हुआ फिर वह जंगल की ओर चल दिया |चलते चलते उसके पैर में कांटा चुभ गया |
जैसे ही वह कांटा निकालने के लिए झुका उसने देखा कि चार बूढी औरतें आपस में झगड़ रहीं थीं |उससे रहा नहीं गया, और उसने आपसी विवाद का कारण जानना चाहा |
उन महिलाओं में से एक ने कहा कि हम यह जानना चाहते है कि तुमने किसे सलाम किया था |राजकुमार बहुत चतुर था |उसनेसब से पहले एक महिला से अपना नाम बताने को कहा |वह बोली ,मेरा नामभूख है |राजकुमार ने कहा दूसरी बारी क्या ,जब लगती है तब कुछ भी खाया जा सकता है|द्वितीय महिला ने अपना नाम प्यास बताया |
जबाब में राजकुमार ने कहा ,प्यास का क्या जब प्यास लगती है किसी भी स्त्रोत के पानी से प्यास बुझाई जा सकती
है |अब बारीतीसरी महिला की थी |उसने अपना नाम नींद बताया |पहले राज कुमार ने कुछ सोचा और फिर जबाब
दिया ,नींद जब आती है पत्थर पर भी सोया जा सकता है |अंतिम महिला ने अपना नाम आस बताया |राज कुमार ने उसको झुक कर सलाम किया क्यों की आस पर तो पूरी दुनिया टिकी है |
यह कह कर राज कुमार अपनी राह चल दिया |घूमते हुए वह एक अन्य राज्य में पहुच गया |वहां राजकुमारी
रत्ना का स्वयंवर हो रहा था |राजा ने यह तय किया था कीजो भी ऊपर लटकी घूमती हुई मछली की आँख का
भेदन करेगा ,उसी से राजकुमारी का विवाह होगा |राजकुमार तो कुशल धनुर्धर था|उसने मत्स्य भेदन
सरलता से कर राज कुमारी रत्ना से विवाह कर लिया |
अब वे वहां सुख से रहने लगे |बीचमें एक चतुर्थी पड़ी |जब राजकुमारी रत्ना धोबन को बाना देने लगी तो धोबन ने लेने से इंकार कर दिया |धोबन ने कहा की तुम्हारे तो घर बार है ही नहीं ,न सास न ससुरा न खुद का घर |यह सुन रत्ना को भुत बुरा लगा और वहगुस्सा हो कर कोप भवन में जा बैठी |शाम को जब राजकुमार घर आया तब उसने रूठने का कारण पूंछा | रत्ना ने साडी बात बताईऔर कहा की वह अन्नतभी ग्रहणतभी करेगी जब वह अपनी
ससुराल पहुंच जायेगी |यह बात सुन राजा नेखूब दान दहेज और चतुरंगिणीसेना के साथ अपनी बेटी को विदा किया |
जब राजकुमार अपने राज्य की सीमा के पास पहुचा उसने राजा सेमिलने के लिए अपना दूत भेजा |रजा को लगा की कोई अन्य राजा उसे बूढा और कमजोर जानराज्य पर हमला करना चाहता है |राजाउससे मिलने पहुंचा |
राजकुमार रथ से उतरा और अपने पिता के पैर छूने लगा |राजा ने उसे पहचान कर अपने गले लगा लिया |
राजमहल में धूमधाम से बेटे बहू का स्वागत हुआ और राजारानी अपने राज्य का भार अपने योग्य पुत्र को सॉप
कर तीर्थ करने चले गए | लंबे समय तक योग्यतापूर्वक राज्य कर राजकुमार ने अपनी योग्यता का परिचय दिया|

07 फ़रवरी, 2010

संजा

एक राजा के दो बेटी थीं|एक का नाम चंचल और छोटी का नाम संजा था |रोज उन्हें पढाने एक
शिक्षक आते थे |वे चंचल को नेक वक्त और संजा को कम वक्त कहते थे |जब भी रानी यह सुनती
उसे बहुत बुरा लगता |आखिर उसने गुरूजी से पूँछ ही लिया की वे ऐसा क्यों कहते है | वे बोले संजा बहुत
भाग्य हीन है |यह सुन कर माँ को बहुत बुरा लगा |उसने संजा की बुरी छाया से सब को बचाने के लिए
जंगल में अपनी बेटी के साथ रहने का निश्चय किया |रात के अँधेरे में ,संजा को ले कर वह जंगल की और
चल पड़ी | थोड़ी दूर जाने पर भयंकर काली रात में जंगली जानवरों की आवाज ,उबड खाबड़ रास्ते पर चलना
दूभर हो गया |संजा को जोर से प्यास लगी |माँ बेटी पानी की तलाश में इधर उधर भटकने लगीं |
काफी दूर उन्हें एक बड़ा दरवाजा नजर आया |संजा ने माँ से कहा की वह अभी पानी ले कर आती है |
संजा ने जैसे ही उस घर में प्रवेश किया ,दरवाजा अपनेआप बंद हो गया |
बहुत कोशिश करने पर भी दरवाजा नहीं खुला |हार थक कर माता उसे अपनी किस्मत के भरोसे छोड़ कर
घर लौट गई |
संजा ने देखा की वहां कोई नहीं था |उसने धीरे धीरे एक कक्षा में कदम रखे |वहां एक पलंग पर सुइयों से
भरी हुई एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी |वह पलंग के नजदीक बैठ कर धीरे धीरे उन सुइयों को निकलने लगी |
एक दिन राह पर चलते किसी कीआवाज सुन वह ऊपर बरामदे में गई |बेचने वाला एक दासी को बेच रहा था |
अपने अकेले पन से तंग आकर संजा ने उसे खरीद लिया |बांदी का नाम रानी था |वह भी संजा की मदद करने लगी |एक सुबह संजा नहाने जाने के पहिले बोली की अब तुम कोई सी भी सुई न निकलना |बांदी को उत्सुकता हुई और
उसने आँखों पर लगी दोनो सुई भी निकल दीं |वह राजकुमार राम राम कर उठ बैठा |सामने एक लड़की को देख
उसका नाम जानना चाहा | बांदी थी बहुत चालक |वह राजकुमारी बन बैठी और संजा को अपनी नौकरानी बताया |
एक और करिश्मा हुआ |जैसे ही राज कुमार ने ताली बजाई ,सारे महल में चहलपहल हो गई |पर संजा नौकरानी ही बन कर रह गई |एक दिन राज कुमार मेले में जा रहा था |उसने सबसे अपनी अपनी पसंद की चीज मंगाने को कहा |रानी बनी बांदी ने अपने लिए छल्ले व् चुटील लाने को कहा | |पर संजा ने कठपुतली मंगाई |
अब रोज रात को कठपुतली का नाच होता |संजा कभी हंसती कभीं रोती और गाती "रानी थी सो बांदी हुई ,
बांदी थी सो रानी हुई "|संजा की आवाज बहुत मीठी थी |लोगों ने राजकुमार से पूंछा "इतनी रात गए कौन
गाता है |राजकुमार ने नींद से बचे रह कर अपनी ऊँगली काट ली और जाग कर गाने की राह देखने लगा
कुछ समय भी न बीता था कि उसे संजा की मधुर आवाज सुनाई दी| वह नीचे आया और इस गाने का रहस्य
जानना चाहा |संजा ने सारा राज उजागर कर दिया|राजकुमार को बहुत गुस्सा आया |उसने दरवाजे के ठीकसामने एक गड्ढा खुदवाया |नकली बनी राजकुमारी को उसमें जिन्दा गढ़वा दिया |
संजा के साथ शादी कर सुख से रहने लगा |
संजा के पिता को जब पता चला ,वे अपने आप को रोक न सके और बहुतसे उपहार ले कर अपनी बेटी से
मिलने आए | उसकी सम्पन्नता देख कर उनकी आँखे ख़ुशी से भीग गई |बच्चे का कोई भी नाम
लिया जाए ,जरुरी नहीं कि उसका प्रभाव जीवन पर होता है |

आशा

श्रंखला

रेशा-रेशा चुन-चुन कर
जब से उसे बनाया गया ,
कई मुश्किलों में घिरी ,
पर अपनों से न भाग सकी ,
कैसे बीते समय कठिन ,
यह कूट कूट करसिखाया गया ,
जब रेशों का निखारा रूप ,
सुंदरता ने दी दस्तक ,
अनेकानेक रंगों से उसको ,
बहुत प्यार से सजाया गया ,
फिर भी नज़रों से दूर रही ,
न देखा गया न सराहा गया ,
उसमें परिवर्तन होने लगे ,
वह श्रंखला बनी और आगे बढ़ी ,
वह भी कुछ खास न कर पाई,
मेखला बन कर मुसकाई,
मेखला का रूप भी न बाँध सका ,
कोई बंधन भी निभा न सका ,
पर यही मेखला का बंधन ,
जब बना जीवन का दर्शन ,
कोई नहीं जान पाया ,
वह कैसे कहाँ से उठाई गयी ,
अब वही मेखला बन गई श्रंखला ,
कई बार बँधी कई बार खुली ,
फिर भी कोने में पड़ी रही ,
पर एक पारखी पा उसको ,
नए रूप में ले आया ,
अब यही श्रंखला रूप बदल अपना ,
जब कमरे में सज जाती है ,
पड़ती है जब नजर उस पर ,
वह बार-बार खिल उठती है ,
और सदा सराही जाती है |

आशा

04 फ़रवरी, 2010

क्षणिका

आज के इस शुभ अवसर पर ,
है स्वागत आगत आज आपका ,
नित नयी प्रीत प्रगाढ़ बनाये ,
है दिन सब के सौभाग्य का|
आशा

03 फ़रवरी, 2010

तुम मुझे अपनी सी लगती हो






तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो
जब मै मै नहीं होता
तुम में समा जाता हूँ
और न जाने कहाँ गुम हो जाता हूँ |
तुम मुझे अपनी सी लगती हो
जब जाड़े की धूप सी
मुझे छू जाती हो
और शाम को सिमट कर
कहीं छुप जाती हो |
तुम्हारा अस्तित्व मुझे
यह आभास कराता है
कि मैं एक विकसित होता पौधा हूँ
तुम हो एक प्रतान
मुझे बढ़ाती हो
सँवारती हो
पल्लवित होने का
पुष्पित होने का
अवसर खोज लाती हो |
तुम मुझे बहुत प्यारी लगती हो
जब मै तुम में खो जाता हूँ
स्वयं अपने को भूल जाता हूँ
नित नए सोच उभरते हैं
मै उनमें बह जाता हूँ |
तुम में मिलती है मुझे
एक तस्वीर नई
मै उसमें समा जाता हूँ
साथ तुम्हारा पा कर
भावों में बहता जाता हूँ |
मन में उठते भावों को
तुम पर ही लुटाता हूँ
तब मैं मैं नहीं रहता
तुम में ही समा जाता हूँ |
क्या तुम हो अनजान पहेली सी
मै रोज जिसे हल करता हूँ
मै तुम में खुद को पाता हूँ
तुम मुझे सुहानी लगती हो
जब तुम में मैं खो जाता हूँ |

आशा

02 फ़रवरी, 2010

क्षणिका

विदाई के क्षण होते भारी,
कुछ मीठी कुछ यादें खारी ,
सदा यही क्रम रहता जारी ,
प्रीत हमारी पर अनियारी |

01 फ़रवरी, 2010

बात पिछले साल की

पिछले वर्ष ण जाने क्या हुआ इन्द्र देव अचानक रूठ गए |जब गर्मी आई तो बिना पानी के बहुतसी कठिनाइयों का
सामना करना पड़ा |पहले नल रोज आते थे ,फिर ४ दिनमें एक बार और बाद में यह स्थिती हो गई की नल में
टपकती पानी की एक बूंद देखने को भी तरस गए |टेंकरों से दूर दूर से पानी लाया जाता था | अन्य स्त्रोतों को भी सफाई
के बाद उपयोग में लाया गया |पर फिर भी पूर्ति ण हो पाई
शहर से बहुत दूर के जल स्त्रोत से चैनल कटिंग कर बहुतही महंगी योजना अपना कर पानी सोने के भाव उपलब्ध हुआ |पर जैसेही स्थिति सामान्य हुई ,मानसून सक्रीय हुआ हमें अखवार में पढने को मिला की इतनी
मेहनत से बनाई गई चैनल को समाप्त किया जा रहा है | मै कई दिन तक सोचती रही उसको तोड़ने से क्या फायदा
हुआ इतना धन उसे बनाने में लगा और फिर उसे तोड़ने में |क्या यह धन का दुरूपयोग नहीं है ? यदि उस स्त्रोत
के जल का उपयोग नहीं करना था तब भी उसे यथावत रख कर फिर किसी कठिन समय के लिए सहेजा जा सकता था |क्या पता कब इसकी आवश्यकता हो जाती |पर शान को कौन समझाए ,बार बार की तोडा फोड़ी सरकारी
खर्च को बढ़ती है | इससे लाभ की जगह हानी ही होती है जितना सरकार खर्च करती है ,उसका प्रभाव आम नागरिक
पर ही तो पड़ता है |
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