जब भी देखा उसे
चेहरा दर्प से चमकता था
थी अजीब सी कशिश
सब से अलग लगता था |
कानों में खनकती थी
आवाज मधुर उसकी
चाल भी ऐसी
सानी नहीं जिसकी |
था व्यक्तित्व ही ऐसा
मितभाषी और मिलनसार
पराया दर्द अपना समझ
तन मन से सेवा करता था |
हर बात
पर उसकी
रुबाई या गजल बन जाती थी
यह एक शगल सा हो गया
मैं व्यस्त उसी में हो गया |
उसी ने सूचना दी जाने की
अपने उद्देश्य को पाने की
खुश भी हुआ पर बिछडने से
ठेस लगी दिल को |
रुक न सका कह ही दिया
तुम्हारे लिए जाने कितनी
गजलें लिखी मैंने
आज मैं सौंपता तुम्हें |
नम आँखों से विदा किया
विमोह को बढ़ाने न दिया
उसने भी एक पन्ना न पलता
साथ ले कर चल दिया
मैं सोचता ही रह गया
था क्या विशेष उसमें
जो खुद को रोक न पाया
जज्बातों मैं बहता गया |
आशा