19 दिसंबर, 2013

यह क्या हुआ



हरे भरे इस वृक्ष को
यह क्या हुआ
पत्ते सारे झरने लगे
सूनी होती डालियाँ |
अपने आप कुछ पत्ते
पीले भूरे हो जाते
हल्की सी हवा भी
सहन न कर पाते झर जाते
डालियों से बिछुड़ जाते |
डालें दीखती सूनी सूनी
उनके बिना
जैसे लगती खाली कलाई
चूड़ियों बिना |
अब दीखने लगा
पतझड़ का असर
मन पर भी
तुम बिन |
यह उपज मन की नहीं
सत्य झुटला नहीं पाती
उसे रोक भी
नहीं पाती |
बस सोचती रहती
कब जाएगा पतझड़
नव किशलय आएँगे
लौटेगा बैभव इस वृक्ष का |
हरी भरी बगिया होगी
और लौटोगे तुम
उसी के साथ
मेरे सूने जीवन में |

आशा

18 दिसंबर, 2013

हाइकू (२)


(१)
सपने कभी
नही होते अपने
हरते चैन |
(२)
की मनमानी
उलझी सपनों की
दीवानगी में |.
(३)
बड़ों की सीख 
मान स्वप्न  दीवानी
मैं मैं न रही |
(4)
चेहरा तेरा
दर्प से चमकता
सच्चे मोती सा |
(५)
रिश्ता प्यार का
निभाना है कठिन
आज ही जाना |
(६)
यूं न देखते
सोचते समझते
तुझे निभाते |
(७)
किया अर्पण
पूरा जीवन तुझे
तूने जाना ना |

आशा

16 दिसंबर, 2013

हाइकू

  1. -(१)
ना दो आघात
बेबात की बातमें
उलझना ना |
(२)
उलझना ना
किसी से कभी यूंही
बंध रहना |

14 दिसंबर, 2013

शिक्षा ली सरकार ने



गांधी जी के तीन बन्दर
देते सीख बुरा मत देखो
बुरा मत सुनो ,बुरा मत बोलो
सब लेते सीख अपने हिसाब से
दीखती यह सरकार भी उन जैसी
होता रहता अत्याचार, अनाचार
पर आँखें बंद किये है
कुछ देखती नहीं |
कोई कुछ भी करता रहे
खोले शिकायतों के पुलिंदे
पर वह क्या प्रतिक्रया दे
कानों पर हाथ रखे है
कुछ सुन नहीं सकती |
यदि कुछ देखे सुने
अनजान बनी रहती है
कुछ बोलती नहीं
मुंह पर हाथ रखे है
मौन व्रत लिए है |
रही असफल हर अहम् मुद्दे पर
जुम्मेदार देश की बदहाली के लिए
जो सीख बंदरों से ली
उसका प्रतिफल है यह |
आशा

12 दिसंबर, 2013

इष्ट मेरा

हैं कंटकमय संकीर्ण 
यह क्षत- विक्षत  पहुँच मार्ग 
पर है सेतु 
तेरे मेरे बीच का |
 पग पग आगे बढूँ
ना रुकूं ना ही विश्राम करूं 
फिर भी मंथर गति 
तीव्र न हो पाती
किरणे तेजस्वी अरुण की 
भी मलिन हो जातीं 
अरुणोदय से सांझ तलक 
कुछ दूरी भी तय न कर पाती  
है यह कैसी विडंबना 
तेरी छाया तक न छू पाती 
पर हूँ दृढ प्रतिज्ञ 
कदम मेरे पीछे न हटेंगे 
तुझे पा कर ही दम लेंगे 
अब आपदाओं का न भय  होता 
माया मोह से ना कोई  नाता
ध्यान तुझी में रहेता 
 इष्ट मेरा है तू ही
जिसमें सिमटा जीवन मेरा |
आशा