यह क्षत- विक्षत पहुँच मार्ग
पर है सेतु
तेरे मेरे बीच का |
पग पग आगे बढूँ
ना रुकूं ना ही विश्राम करूं
फिर भी मंथर गति
तीव्र न हो पाती
किरणे तेजस्वी अरुण की
भी मलिन हो जातीं
अरुणोदय से सांझ तलक
कुछ दूरी भी तय न कर पाती
है यह कैसी विडंबना
तेरी छाया तक न छू पाती
पर हूँ दृढ प्रतिज्ञ
कदम मेरे पीछे न हटेंगे
तुझे पा कर ही दम लेंगे
अब आपदाओं का न भय होता
माया मोह से ना कोई नाता
ध्यान तुझी में रहेता
इष्ट मेरा है तू ही
जिसमें सिमटा जीवन मेरा |
आशा
सुंदर भाव ...सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
भक्ति भाव का बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
क्या बात!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : रोग निवारण और संगीत
बहुत सुन्दर भाव..नी पोस्ट 'आमा' में आप का स्वागत है..
जवाब देंहटाएंअति उत्तम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंसमर्पण के अनमोल भाव से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! बहुत ही अनुपम अभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !
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