12 दिसंबर, 2013

इष्ट मेरा

हैं कंटकमय संकीर्ण 
यह क्षत- विक्षत  पहुँच मार्ग 
पर है सेतु 
तेरे मेरे बीच का |
 पग पग आगे बढूँ
ना रुकूं ना ही विश्राम करूं 
फिर भी मंथर गति 
तीव्र न हो पाती
किरणे तेजस्वी अरुण की 
भी मलिन हो जातीं 
अरुणोदय से सांझ तलक 
कुछ दूरी भी तय न कर पाती  
है यह कैसी विडंबना 
तेरी छाया तक न छू पाती 
पर हूँ दृढ प्रतिज्ञ 
कदम मेरे पीछे न हटेंगे 
तुझे पा कर ही दम लेंगे 
अब आपदाओं का न भय  होता 
माया मोह से ना कोई  नाता
ध्यान तुझी में रहेता 
 इष्ट मेरा है तू ही
जिसमें सिमटा जीवन मेरा |
आशा




10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भाव ...सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत सुन्दर भाव..नी पोस्ट 'आमा' में आप का स्वागत है..

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. समर्पण के अनमोल भाव से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! बहुत ही अनुपम अभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !

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