10 दिसंबर, 2013

एक बाल रचना



तितली रानी बड़ी सयानी
फूल फूल पर मंडराती
मकरंद सारा चट कर जाती
फिर ही कहती प्यास नहीं बुझी
मैं तो प्यासी ही रही |
पांसा फेकती सुन्दर पंखों का 
गुलाब को दुलराती 
बहुत प्यार करती है उसको 
बारम्बार उसे जताती |
वह उसे समझ नहीं पाता
साथ पा बहुत खुश होता 
है कितनी मतलबी 
जान नहीं पाता  |
पर वह तो है बहुत चतुर 
जैसे ही क्षुधा शांत होती 
मन भर जाता
उड़ती दूसरा पुष्प तलाशती |
फूल बिचारा सीधा साधा 
उसको पहचान नहीं पाता 
अपना मित्र जान कर 
बार बार गले लगाता |
आशा


22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (11-12-13) को अड़ियल टट्टू आपका, अड़ा-खड़ा मझधार-चर्चा मंच 1458 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर मनोहर रचना। मतलबी तितली।

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  3. बहुत ही सुंदर शब्दों से अलंकृत आपकी कविता , आदरणीय धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: जानिये कैसे करें फेसबुक व जीमेल रिमोट लॉग आउट

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