27 मई, 2014

कमीं कहाँ ?




सोया था सुख निंदिया में
केवल स्वप्नों में जिया
सच्चाई से दूर बहुत
अपनी दुनिया में रहा  |
एक स्वप्न में एक दिन
खुद को किया बंद कमरे में
पुस्तकों से घिरा हुआ
बेमतलब पन्ने पलट रहा |
किताब ने शिकायत की
पूरे  वर्ष अवहेलना झेली
तुमने  कद्र न की 
अब शोर सहन क्यूं न कर पाते|
रात  भर जगने का
सब  को भ्रम में  रखने का  
पढ़ने का  नाटक
भी तो कम न किया |
रात रात में जाग जाग कर
बिजली का खर्च बढ़ाया
सब की आँखों में धुल झोंक
कंप्यूटर भी खूब चलाया |
यदि पढ़ लिया होता
यह हाल न होता
अपना मन टटोलो
किसका नुक्सान हुआ  ?
धबराहट में नींद खुल गई
था तरवतर पसीने में
सोच में पड़ गया
कमी कहाँ थी अध्यन  में ?

25 मई, 2014

व्यथा पिता की


 


हारा तन के संताप से
मन के उत्पात से
जीवन व्यर्थ हुआ
 जग के प्रपंचों  से |
बचपन में अकेला था
कोई मित्र न मेरा था
केवल घर ही मेरा था
पर बीमारी ने घेरा था |
यौवन में पा संगिनी
घर में देखा स्वप्न
प्रजातंत्र लाने का
हर बात के लिए
 सबसे साझा करने का |
सब ने जाना केवल
अधिकार बोलने का
आज है ना कोई वजूद मेरा
ना ही कोई आवाज
उस शोर में दब कर रह गई है
आज मेरी पहिचान |
बेबस मूक दर्शक हूँ
अपनी व्यथा किससे कहूँ
पिस रहा हूँ
 चक्की के दो पाटों में |

24 मई, 2014

ए वादेसवा (हाइकू)


(१) 
 ए वादेसवा 
जाना उस देश में 
जहां हो प्रिया|
(२)
 नम  अधर 
ओसमय वदन 
लगते  मदिर |
(३)
खिचती  रेखा
उन  दौनों के बीच 
बढती दूरी |
(४)
ए मीत  मेरे 
है  यह रीत नहीं 
तुम न आए |
(५)
जलते पैर 
धूप है हरजाई
 जाने न दे |
(६)
नैन  रसीले 
नटखट कान्हा के 
भरमा गए |
(७)
परिवर्तन  
लोगों के विचारों में 
अमन लाए |
आशा 









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22 मई, 2014

रिश्ते का सत्य


जल में घुली चीनी की तरह
कभी एक रस ना हो पाए
साथ साथ न चल पाए
तब कैसे देदूं नाम कोई  
ऐसे अनाम रिश्ते को |
जल में मिठास आ जाती है
चीनी के चंद कणों से
होती है हकीकत दिखावा नहीं
पर स्थिति विपरीत यहाँ
रिश्ता बहुत सुदृढ़ दीखता
पर खोखला अंदर से |
दौनों में कितना अंतर है
पर जीवन का सत्य यही है
मतलब के सारे रिश्ते हैं
छलना का रूप लिए हैं |
क्षणभर के लिए बहकाते हैं
वास्तविक नजर आते हैं
तभी विचार आता है
क्या रिश्तों का सत्य यही है |
आशा