सोया था सुख निंदिया में
केवल स्वप्नों में जिया
सच्चाई से दूर बहुत
अपनी दुनिया में रहा |
एक स्वप्न में एक दिन
खुद को किया बंद कमरे में
पुस्तकों से घिरा हुआ
बेमतलब पन्ने पलट रहा |
किताब ने शिकायत की
पूरे वर्ष अवहेलना झेली
तुमने कद्र न की
अब शोर सहन क्यूं न कर पाते|
रात भर जगने का
सब को भ्रम में रखने का
सब को भ्रम में रखने का
पढ़ने का नाटक
भी तो कम न किया |
रात रात में जाग जाग कर
बिजली का खर्च बढ़ाया
सब की आँखों में धुल झोंक
कंप्यूटर भी खूब चलाया |
यदि पढ़ लिया होता
यह हाल न होता
अपना मन टटोलो
किसका नुक्सान हुआ ?
धबराहट में नींद खुल गई
था तरवतर पसीने में
सोच में पड़ गया
कमी कहाँ थी अध्यन में ?
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