06 जून, 2014

व्यथा तुम्हारी





 















-अनजाने में कब
तुम्हारे पंख काटे गए
तुम अनभिज्ञ रहीं 
सोचने  का समय न था |
जब उड़ने की इच्छा हुई
पिंजरा छोडना चाहा
परों के अभाव में
चाह उड़ान भरने की
 तिरोहित हो गयी |
सपोले पाले घर में ही
जाने कब नाग हो गए
सारी खुशियाँ छीन ले गए
उन से मुक्त हो नहीं सकतीं
यही घुटन अंतस की
कभी पनपने न देगी
समूचा तुम्हें निगल जायेगी
आस अधूरी रह जायेगी
जब तक बैरी पहचानोगी
बहुत देर हो जाएगी
बाहर सब से जूझ सकती हो
घर  में पनपा बैरी 
तुम्हारी खुशी
देख नहीं सकता
उसे  कैसे जानोगी |

04 जून, 2014

बिछोह





बिछोह
एक चिड़िया रंग बिरंगी
चहकती फुदकती दाना चुगती
उड़ान भरती अपने  साथी संग
उमंग उसकी छिपाए न छिपती |
पर अचानक एक दिन
किसी दुष्ट की निगाह पड़ गई
जोर का प्रहार किया
दोनो आहात हुए पर उड़ चले |
दिग्भ्रमित हो राह भूले
बिछड़े एक दूसरे से
खोजा रहवास अपना
पर उस तक पहुंच नहीं पाए  |
चिड़िया थक कर हुई  चूर  पर निंद्रा से दूर
रात्री में वह सोच रही
साथी न जाने कहाँ होगा
क्या वह भी उसे खोजता होगा |
सारे प्रयत्न असफल रहे
ना मिलना था ना  मिल पाए
था विधि  का विधान यही
बिछुडना प्रारब्ध था उनका |
आशा

02 जून, 2014

खिला कमल





खिला कमल
कितना आकर्षक
सरोवर में |

पंक से दूर
है व्यक्तित्व विशेष
दृढता लिए |

समूचा देश
कहता नमो नमो
आशा विशेष |
आशा
·

31 मई, 2014

वन संपदा





1--धानी चूनर
 पहनी धरती नें
छटा असीम
योवन छलकता
मन छूना चाहता |

2--है हरीतिमा
मनोरम दृश्य है
महका वन
पक्षी पंख फैलाते
चैन की सांस लेते |

3--कटते वन
विलुप्त हरियाली
गर्म मौसम
तल्खी मिजाज में है
उस ही का कारण |

4--काॅपी कलम
बिखरे से विचार
व्यस्त उनमें
मुझे सुकून देते
यही संपदा मेरी |
आशा





30 मई, 2014

क्षणिकाएं

(१)

सदा खिलता कमल पंक में
रहता दूर उसी पंक से

अपना स्वत्व बनाए रखता 
 शुचिता से भरपूर



निगाहेकरम की जो ख्वाहिश थी उन की
राख के ढेर में दब कर रह गयी
ना ही कोई अहसास ना ही कोई हलचल
पत्थर की मूरत हो कर  रह गयी |


28 मई, 2014

रे मन मेरे (हाईकू )





रे मन मेरे
क्यूं उलझा रहता
चैन गवाता |

तारीफ तेरी
किस बात के लिए
जख्म दे गयी |

बाण नैनों के
नागिन जैसी जुल्फें
दीवाना करें |

दो  पटरियां 
चांदनी रात कहे 
दूर जाना है |

दो पटरियां 
मिल न पातीं कभी 
साथ चलतीं |


जाना चाहती
दूर क्षितिज तक
भावों को लिए |

पक्षी चहका
छु कर क्षितिज को
क्षमता जागी |


हाथ बढ़ाया
मिलन की आस में
क्षितिज तक |
आशा