05 जुलाई, 2014

साथ तुम्हारा







दो कदम तुम चलो
कुछ कदम मैं भी चलूँ
राह मिल ही जाएगी
जब दौनों साथ होंगे
जल तुम साथ लेना
थाल नैवैध्य का

मैं  भी उठा लूंगी
साथ तुम्हारे जाऊंगी
पूजा का पूरा फल होगा
जब साथ तुम्हारा  होगा
इसमें कोई  स्वार्थ नहीं
है यह प्रभु की मर्जी 

इसमें गलत कुछ भी नहीं
विधि का विधान है यही
राह एक सुनिश्चित है
मुझ में तुम में भेद नहीं |
आशा

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03 जुलाई, 2014

स्वप्न सिमट जाते हैं


  :
-निशा के आगोश में
स्वप्न कई सजते हैं
देखे अनदेखे अक्स
दृष्टि पटल पर उभरते हैं |
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहता
सरिता के बहाव से
कल कल निनाद करते
 अनवरत गतिमान होते
ये व्यस्त मुझे रखते |
भोर का आगाज सुन
सब कुछ बदल जाता
धरती पर पैर रखते ही
असली धरातल नजर आता |
और कदम उठते हैं
चौके में जाने को
व्यस्त हो जाती हूँ
घर के काम काज  में |
खाली कहाँ रह पाता  है
मस्तिष्क मेरा छोटा सा
स्वप्न सिमट जाते है
व्यस्त दिनचर्या में |
आशा 

02 जुलाई, 2014

वहीं हमारा घर होगा







चल सजनी आ चलें वहाँ
आकाश धरा मिलते जहां
वहाँ छोटा सा घर बनाएँ
हरियाली भरपूर लगाएं
जब भी पंछी वहाँ आएं
दाना चुगें प्यास बुझाएं
कितना सुखद एहसास होगा
तृप्ति का आभास होगा |
संचित सुखद पल जीने को
मन हो रहा बेकल
वह वहीं शांत हो पाएगा
जब तुम्हारा साथ होगा |
परम शान्ति का  अनुभव होगा 
कोइ व्यवधान नहीं होगा
प्रभु आराधन में लीन
मधुर ध्वनि मुरलिया की
जब भी सुन पाएंगे
श्रद्धा सुमन बरसाएंगे
परम प्रेम का आगाज़ होगा
जीवन तभी सार्थक होगा
दूर क्षितिज तक कभी
शायद ही कोई पहुंचा होगा
पर हमें न कोइ रोक सकेगा
वहीं हमारा घर होगा |
आशा  

30 जून, 2014

प्रार्थना







 कण कण में है बास तेरा
पल  पल होता अहसास तेरा
फिर सामने क्यूं नहीं आता
क्या कमी  रही अरदास में |

पारस को छू लोहा स्वर्ण होता
शिला चरण रज पा  हुई अहिल्या
यदि तेरी छाया ही छू पाऊँ
 मैं धन्य हो जाऊं |

है एक प्रार्थना तुझसे
तेरी शरण यदि  मैं पाऊँ
जब भी साक्षात्कार हो
तुझमें विलीन हो जाऊं |
आशा

27 जून, 2014

मंजूषा यादों की








यादों की मंजूषा
है सुरक्षित ऊंचाई पर
सोचती हूँ
कब वहाँ पहुंचूं|
कद मेरा छोटा सा
मंद दृष्टि क्षीण काया 
ज़रा  ने घेरा 
फिर भी होता नहीं सबेरा |
यादों पर काली छाया
वहाँ जाने नहीं देती
पंखी  सा मन छटपटाता
वहीं पहुँचना चाहता|
व्यस्तता ओढ़े हुए हूँ
फिर भी मन बहकता
उसी ऊंचाई पर पहुँच
यादों में खोना चाहता|
बीते दिन लौट नहीं पाते
यादों में बसे रहते
जब भी एकांत मिलता
 मंजूषा का पट खुलता|
अतीत मेरे समक्ष होता
उन लम्हों की मिठास
मैं भूल नहीं पाती
उनमें ही समाती जाती |
आशा