09 जुलाई, 2014

फक्कड़







बहुत रोया जब जन्म लिया
माँ  की गोद में सोया
सब की बाहों में झूला
लगा खुशियों का मेला |
बचपन कब बीता याद नहीं
पर इतना अवश्य याद रहा
वह जीवन सीधा साधा था
चिंताओं  से बहुत दूर था |
हुआ किशोर मस्ती में जिया
मित्रों का प्रभाव अधिक हुआ
आगे क्या होगा न सोच सका
भावना  प्रधान होता गया |
यौवन ने दी दस्तक जब 
एक से दो और दो से चार हुए 
जिंदगी ढोना सीख लिया
जाने कब योवन बीत गया |
कब ज़रा ने घेरा दबे पाँव आकर
एहसास न हो पाया 
अब  है उसी से  याराना
आगे क्या होगा क्यूं सोचूँ|
पर हूँ उत्सुक जानने को
 जिंदगी  इतनी कट गई 
बहुत  बुरी भी न रही 
आगे न जाने क्या होगा |
आशा 

सचित्र तथ्य

05 जुलाई, 2014

थी वह एक छलना









पेड़ों से छन कर आती धूप
बड़ी सुहानी लगती
प्रातः सूर्य दर्शन का
अनोखा अंदाज देती  |
वीथियों पर चलते चलते
नए नए अनुभव होते
जब विहग व्योम में उड़ाते
मधुर संगीत मन में भरते |
महावरी कदम जब
श्वेत  पुष्पों पर पड़ते
उनसे लुका छिपी करते
छलकता यौवन मन हरता |
ओस से नहाया वदन
उस धूप छाँव में
 अधिक ही  दमकता
मन में बसता |
पायल की रुनझुन
घुंघरुओं की मधुर धुन
ज्यों ही सुनाई देती
मन में कई रंग भरती |
हाथ बढा उसे छूना चाहता
पर पहुँच से बहुत दूर
थी वह एक छलना
कवि की केवल कल्पना |
आशा

साथ तुम्हारा







दो कदम तुम चलो
कुछ कदम मैं भी चलूँ
राह मिल ही जाएगी
जब दौनों साथ होंगे
जल तुम साथ लेना
थाल नैवैध्य का

मैं  भी उठा लूंगी
साथ तुम्हारे जाऊंगी
पूजा का पूरा फल होगा
जब साथ तुम्हारा  होगा
इसमें कोई  स्वार्थ नहीं
है यह प्रभु की मर्जी 

इसमें गलत कुछ भी नहीं
विधि का विधान है यही
राह एक सुनिश्चित है
मुझ में तुम में भेद नहीं |
आशा

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03 जुलाई, 2014

स्वप्न सिमट जाते हैं


  :
-निशा के आगोश में
स्वप्न कई सजते हैं
देखे अनदेखे अक्स
दृष्टि पटल पर उभरते हैं |
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहता
सरिता के बहाव से
कल कल निनाद करते
 अनवरत गतिमान होते
ये व्यस्त मुझे रखते |
भोर का आगाज सुन
सब कुछ बदल जाता
धरती पर पैर रखते ही
असली धरातल नजर आता |
और कदम उठते हैं
चौके में जाने को
व्यस्त हो जाती हूँ
घर के काम काज  में |
खाली कहाँ रह पाता  है
मस्तिष्क मेरा छोटा सा
स्वप्न सिमट जाते है
व्यस्त दिनचर्या में |
आशा