30 जुलाई, 2014
29 जुलाई, 2014
बन्दर राजा
कुछ न कुछ हरकत करता
उछल कूद करता रहता |
खुद छोटा पर पूंछ बड़ी सी
करता बहुत प्यार उसे
वह होती बहुत सहायक
संतुलन कायम रखने में |
इस छत से उस छत पर जाना
पेड़ों पर नर्तन करना
अपनी लम्बी पूंछ लिए
अपनी लम्बी पूंछ लिए
है खेल उसके लिए |
कच्चे पक्के फल खाना
कुछ
खाना कुछ को गिराना
बच्चों को चिपकाए रखना
क्रोध जब कभी हावी होता
दांत दिखाता गुर्राता
फिर भी संयम नहीं छोड़ता
भागने में ही भलाई समझता |
28 जुलाई, 2014
आवारा बादल
आवारा बादल
कहाँ से आया
कहाँ जाएगा
किसी ने न जाना |
किस पर थी निगाह
यह तो बता जाता
मन आंदोलित ना होता
अस्तव्यस्त न होता |
होगा महरवान
तभी तो बरसेगा
अब कोई बहाना न बनाना
अपना जलवा दिखाना |
मौसम बड़ा सुहाना
बाहर निकले तब जाना
हरे भरे उपवन
सरोवर जल से लबालब|
तेरी आवारगी
थी एक बहाना
तुझे यहीं आना था
सब का संताप मिटाना था |
27 जुलाई, 2014
दोहे
माँ की ममता पुत्र पर ,बेटी देख रिसाय |
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||
यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||
जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||
जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||
मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||
यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||
जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||
जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||
मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा
26 जुलाई, 2014
चिंता
आँगन में जल भरा
चिड़िया आती
दाना खाती पानी पीती
पंख डुबोती नहाती
जल्दी से उन्हें सुखाती
भूख उसे नहीं है
फिर भी मन चंचल
स्थिर नहीं है
कोई जान नहीं पाता
उसकी चिंता वही जानती
चाहती उड़ना
समीप के वृक्ष पर
जहां है उसका बसेरा
बच्चे राह देखते होंगे
चौंच में कीड़ा दबा कर
भरती उड़ान उस ओर
चूं चूं करते बच्चों को
चूं चूं करते बच्चों को
प्यार से खिलाती
और समेट लेती उन्हें
अपने पंखों के नीचे
कोई जाने या न जाने
माँ का दुलार
माँ का दुलार
पर बच्चे जानते हैं
है माँ क्या उनके लिए |
आशा
25 जुलाई, 2014
अहम्
मैं आज अपनी ९०० वी पोस्ट आप सब तक पहुंचा रही हूँ |आशा है आपको पसंद आएगी |
गैरों से मेल अपनों से गिला
गैरों से मेल अपनों से गिला
है बात बहुत अजीब सी
ना हो तुम किसी की
ना हो तुम किसी की
ना कोई तुम्हारा मीत मिला |
यह तुमने क्या किया
किस बात का बदला लिया
मैं निरीह देखता रहा
गिला शिकवा न किया |
क्यूं रूठीं कारण न बताया
यदि हाथ मिला लिया होता
कुछ तो हल निकलता
कुछ तो हल निकलता
आलम उदासी का न होता |
जानता हूँ हो रूप गर्विता
अभिमानी हो पाषाणी नहीं
पर निष्ठुर हो जान नहीं पाया
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
जब पीछे से कोई वार करेगा
तभी जान पाओगी
कितना दुःख होता है
ऐसे किये व्यवहार से |
वार चाहे जैसा भी हो
अस्त्र का या शब्दों का
शूल सा चुभता है
जीना दूभर होता है |
जब अहम् टकराते है
प्रतिउत्तर नहीं सूझता
अस्तित्व सिमट जाता है
मन के किसी कौने में |
आशा
24 जुलाई, 2014
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