10 सितंबर, 2014
09 सितंबर, 2014
त्रासदी
तिनका तिनका जोड़
बनाया था आशियाँ
सारी तमन्नाओं का
मूर्त रूप गरीब खाना |
पलक झपकते ही
भयावह हादसा हुआ
सैलाव ऐसा था की
जल मग्न आशियाँ हुआ |
जल मग्न आशियाँ हुआ |
सारी यादें बह गईं
बचपन
से आज तक
दो गज जमीन भी न बची
सर छिपाने को वहां |
जल ही जल यहाँ वहां
हूँ कहाँ किस हाल में
यह भी न समझ पाता
कुछ भी न नजर आता |
रह गया है गम
घर से ,अपनों से,
सब से बिछुड़ने का
समस्याओं से जूझने का |
दूर
सभी स्वप्नों से
स्वप्नों की जन्नत से
होगा वर्तमान इतना भयावह
कभी सोचा न था |
कभी सोचा न था |
लगता नहीं इस जीवन में
फिर से बहार आएगी
सारे दुःख भूल कर
जीवन गाड़ी चल पाएगी |
आशा
आशा
08 सितंबर, 2014
विचरण कविता लोक में
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विचरण कविता लोक में
स्वप्न जगत से कम नहीं
हर शब्द प्रभावित करता
निहित भावों की सुगंध से |
दस्तक दिल के द्वार पर
चंचल मन स्पंदित करती
द्रुत गति से ह्रदय धड़कता
वहां प्रवेश करने में |
जब पहला कदम बढाया
सब कुछ नया नया सा था
पैरों में होता कम्पन
आगे बढ़ने न देता |
राह कठिन पर मन हठी
रुका नहीं बढ़ता गया
बाधाएं सारी पार कर
मार्ग प्रशस्त करता गया |
आज हूँ जिस मोड़ पर
भाव मुखर होते हैं
स्वप्नों को बुन पाती हूँ
शब्दों के जालक में |
आशा
आशा
06 सितंबर, 2014
चाय की प्याली में तूफान
झूठ के पैर नहीं होते
सुना था पर भोगा न था
सत्य कभी छिपता नहीं
पढ़ा था पर देखा न था |
बिना बात व्यर्थ की बहस
बातों को तूल देती
मन उद्द्वेलित कर देती
पर सच कुछ और ही होता |
जब तक सत्य उजागर न होता
विचारों में वह उलझा रहता
चाहे कहीं भी व्यस्त होता
सत्य खोजता रहता |
किसी भी कहानी
में
बार बार आते परिवर्तन
सार तक पहुँचने न देते
तब विश्वास दगा देता |
ऐसे किस्से बिना सिर पैर के
कपोल
कल्पित लगते
जब तक निर्णायक क्षण ना आए
समय की बर्बादी लगते |
क्या आवश्यक नहीं
जब तक पूर्ण खोज न हो
मुद्दे चाहे जो हों
सब के सामने न हों |
सारे सबूत जब जुट जाएं
सही सटीक हो बात
सही सटीक हो बात
तभी बात खोली जाए
समय का सत्कार हो पाए |
बिना बात बयानबाजी
शोभा नहीं देती
असंतोष को जन्म देती
अपना विश्वास खो देती |
आशा
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