01 दिसंबर, 2014

बंधन अटूट



प्रेम की मिसाल थे
बंधन अटूट दौनों का
दो जिस्म एक जान
 हुआ करते थे  
हल्का सा दर्द भी
 सह न पाते थे
अलगाव से
 बेहाल होते 
यही तो कुछ था  भिन्न
सबसे अलग
  सबसे जुदा
गम जुदाई 
सह न पाते 
मरणासन्न से हो जाते
सदा साथ  रहते देखा
   कुदृष्टि  पड़ गई किसी की
जीवन में विष घुला
सारी शान्ति हर ले गया
जीवन निरर्थक लगा
प्रेम की चिड़िया
 कूच कर गई 
एक की इहलीला 
समाप्त हो गई 
हादसा सह  नहीं पाया 
खुद की जान से गया
और घरौंदा खाली हुआ
क्या सच्चा प्यार
 यही कहलाता
विचारों पर हावी हुआ |
आशा

30 नवंबर, 2014

निर्विकार



है निरीह
 निर्विकार आत्मा
बंधक है
 तन के पिंजरे में
पञ्च तत्व से
 निर्मित है जो
आसान नहीं उसे छोड़ना
है बैचैन बहुत   
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
है बेकरार उन्मुक्त होने को
नहीं चाहती कोइ बाधा
चाहती मुक्ति
तन के पिंजरे से |
एक ही है लक्ष्य
बंधन रहित उन्मुक्त जीवन
वादा  चाहती परब्रह्म से
किये अनगिनत प्रयास
कोई तो सफल हो
परमात्मा की दृष्टि पड़े
 और वह मुक्त हो |
आशा

28 नवंबर, 2014

उन्नयन


 

उलझे उलझे से बाल
लिए विचारों का सैलाव
पहना आधुनिक लिवास
कैसे उसे कोई पहचाने
समय बदला वह बदली
झूठा मुखौटा  ओढ़ा
समय के साथ चली
फिर भी कसक रही मन में
किसने बाध्य किया
 इस परिवर्तन के लिए
पहले थी वह सुप्त
देख समाज की ओर
भ्रमित होती  रही
 खुद में ही सिमटी रही
अब उसने खुद को पहचाना
नारी के महत्व को जाना
आज है वह समर्थ

सजग सक्षम सचेत

नहीं कमतर किसी से

कुछ करने की अभिलाषा
मन में सजोए है
 यह है एक  कहानी
नारी में आए  परिवर्तन की
उसके उन्नयन की | 
आशा