आहुति देती दीपशिखा अपनी मार्ग दिखाती ! अनोखी गल्प जंगल में आग सी फैलती गयी ! जंग की आग विनाश की कगार है अभिशाप ! सूर्य का तेज अग्निपुंज प्रखर होता विशिष्ट ! आशा
उड़ने लगा गुलाल
फागुन आने को है
राधा ने किया सिंगार
वसंत जाने को है
गोपियाँ ताकती राह बाँसुरी बजने को है यमुना में आया उछाल लहरें तट छू रहीं कान्हां मयहोने को बेकल होती जा रहीं पूरे होने को हैं अरमान फागुन आने को है | आशा