10 नवंबर, 2015

दीप जलाओ


diip jalaao के लिए चित्र परिणाम
हो मुदित  दीपक जलाओ
प्यार से उपहार लाओ
प्यार बांटो प्यार पाओ
इस क्षण भंगुर जीवन में
यही पल मधुर लगते हैं
इन्हें जियो जितना चाहो
बाती कपास की स्नेह से भरपूर
अपना स्वत्व भूल स्वयं जलती है
पर जग जगमग करती है
उसी भाव को अपनाओ
स्नेह के दीपक जलाओ
मेल मिलाप भाईचारा  
हैं इस पर्व की विशेषता
मन से इनको अपनाओ
सौहार्द का आग़ाज कर
तिमिर को दूर भगाओ
है यह पावन पर्व रौशनी का
दीप जलाओ दीप जलाओ
मन का अन्धकार मिटाओ |
आशा


07 नवंबर, 2015

विचलन


प्रतीक्षा के लिए चित्र परिणाम
मन की बातें मन में ही
उलझी सी सदा बनी रहतीं
कभी सजग कभी सुप्त
उसे अशांत किये रहतीं
कितना भी प्रयत्न करें
पिंड छोड़ नहीं पातीं
उसे बेचैन किये रहतीं
खुशियों के क्षण मुश्किल से मिलते
दुःख से ही सदा  घिरे रहते
तराजू के दोनो पलड़े
ऊंचे नीचे होते रहते
संतुलित न हो पाते
है कितनी आतुरता
संयम  खुद पर रखने को
फिर भी हल सरल
कोई भी नहीं दीखता
पलड़ा दुःख का झुकता जाता
कम न होना चाहता
विश्रांति के पलों में
झंजावात सा उठाता
अधिक अशांत कर जाता
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
जीवन के उतार चढ़ावों से
या यूँ ही विचलन बना रहेगा
चिर निंद्रा के आगमन तक |
आशा

05 नवंबर, 2015

शब्द


शब्द की अहम भूमिका के लिए चित्र परिणाम

भाव न जाने कहाँ से आते 
ह्रदय पटल पर विचरण करते 
आपस में तकरार करते 
मन की भाषा समझते |
शब्द सजग तत्पर हो
कविता को आकार देते
कठिन परिश्रम से ही 
भावों को साकार करते  |
अहम् भूमिका उनकी होती
रचना के निखार में
उसे सार्थक करने में
अंतर मन स्पष्ट करने में |
छोटी बड़ी बातें उन्हें
  ऊंचाई तक पहुंचातीं
कवि वहां स्थान बनाता
जहां सूर्य तक पहुँच न पाता |
अस्वस्थ अनियंत्रित विचार
 उनसे उपजे  शब्द वाण
ऐसे प्रहार करते
मन में दरार पैदा करते |
अर्थ का अनर्थ होता
किसी का भला न होता
मन अशांत होता जाता
जब शब्दों का दंगल होता |
आशा