02 फ़रवरी, 2016

कोहरा


SHISHIR RITU के लिए चित्र परिणाम
चहु और कुहासा छाया
सर्दी ने कहर ढाया
हाथों को हाथ नहीं सूझता
प्रकृति ने जाल बिछाया 

धुंद की चपेट में वादियाँ
श्वेत चादर से ढकी वादियाँ
शिशिर का संकेत देती वादियाँ
मौसम की रंगीनियाँ सिमटी यहाँ
सैलानी यहाँ वहां नजर आते
बर्फबारी का आनंद उठाते
स्लेज गाड़ी पर फिसलते
बर्फ के खेलों का आनंद लेते
जब कोहरे की चादर बिछ जाती
कुछ भी दिखाई नहीं देता
मन  पर नियंत्रण रख कर
 अपने पड़ाव तकआते
चाय कॉफी में खुद को डुबोकर
रजाई में दुबक कर
अपने को  गर्माते
मौसम का आनंद लेते
कोहरे से भय न खाते |
आशा



30 जनवरी, 2016

तलाश

 man kaa saundary के लिए चित्र परिणाम
दो काकुल मुख मंडल पर
झूमते लहराते
कजरे की धार पैनी कटार से
 वार कई बार किया करते
 स्मित मुस्कान टिक न पाती
मन के भाव बताती
चहरे पर आई तल्खी
भेद सारे  खोल जाती
कोई वार खाली न जाता
घाव गहरे दे जाता
जख्म कहर वरपाते
मन में उत्पात मचाते
तभी होता रहता विचलन
अपने ही अस्तित्व से
कब तक यह सिलसिला चलेगा
जानना है असंभव
फिर भी प्रयत्न जारी है 

कभी तो सामंजस्य होगा
तभी सुकून मिल पाएगा
  अशांत मन स्थिर होगा  |

27 जनवरी, 2016

क्यूँआँख नम हो रही है

शहीद की चिता के लिए चित्र परिणाम
क्यूँ आँख नम हो रही है यह सब तो होता रहता है
बहुत कीमती हैं ये आंसू व्यर्थ बहाना मना है
ये बचाए शहीदों के लिए उन पर ही लुटाना
हर कतरा आंसुओं का अनमोल खजाना है |
आशा

25 जनवरी, 2016

हताशा

 
 
दिलों में पड़ी दरार 
भरना है मुश्किल 
आँगन में खिची दीवार 
करती है मन पर वार  
 पर टूटना मुश्किल 
दीवार ही यदि होती 
कुछ तो हद होती 
पर वहां उगे केक्ट्स 
सुई से करते घाव 
मजबूरन सहना पड़ते
 बचने  नहीं  देते 
सभी  जानते हैं 
खाली हाथ जाना है 
पर एक इंच जमीन के लिए 
बरसों बरस न्याय के लिए 
चप्पलें घिसते रहते 
हाथ कुछ भी न आता 
रह जाती केवल हताशा |


12 जनवरी, 2016

अंतर्मन

 

 हलकी सी आहट गलियारे में
कहाँ से आई किस लिए
 किस कारण से
लगा समापन हो गया
निशा काल का
तिमिर तो कहीं न था
स्वच्छ नीला  आसमान सा 
दृष्टि पटल पर छाया
तनाव रहित जीवन में
 यह किसने सर उठाया
द्वार के कपाट खुले
दर्द का अहसास जगा
धीमी न थी गति  उसकी
पूरी क्षमता से किया प्रहार
तन की सीमा पार कर गई
मन पर भी हावी हुई
सूनी सूनी आँखों से
 देदी विदाई
वरण मृत्यु का करने को
मार्ग बड़ा ही अद्भुद था
आलौकिक नव रंगों से
वर्णन करना है कठिन
वहां तक पहुँच तो न पाए
पर अंतर मन जान गया
भय के लिए स्थान नहीं
इस जग में या उस जग में
ना कहीं माया दिखी
न मोह ने घेरा
सब कुछ  नया सा था
बंद आँखों से दृश्य
कहीं गुम हो गया
था छद्म रूप वह
जन्म मृत्यु  या मोक्ष का
 या था प्रत्यक्ष या परोक्ष
 मन में उठे सवालों का
भय ने हलकी सी
 जुम्बिश तक न दी थी
निरीह दृष्टि तक न उठी थी
आसपास खड़े अपनों  तक
मन में कोई हलचल न थी
ना ही कोई सोच उभरा
पर अब लगा
हलचल न हुई तो क्या हुआ
 शायद मृत्यु  द्वार का पहुँच मार्ग
अंतर मन देख पाया |
आशा










09 जनवरी, 2016

शिक्षक से

माँ हमारी प्रथम गुरू 
उनके बाद आप ही हो 
जिसने वादा निभाया 
हमें इस मुकाम तक पहुचाया 
आज हम जो भी हैं 
आपके कारण बने हैं 
तभी तो दिल से ऋणी हैं 
ऋण कैसे चुकाएं 
नहीं जानते पर आपके 
पद चिन्हों पर चलते 
आपका उपकार मानते |
आशा

26 दिसंबर, 2015

लम्बी सड़क सा जीवन



प्रातः काल सुनहरी धूप
लम्बी सड़क दूर तक 
दे रही कुछ सीख 
तनिक सोच कर देखो |
आच्छादित वह   दीखती
हरेभरे कतारबद्ध वृक्षों से
बनती मिटती छयाओं से
उनके अद्भुद आकारों से |
बाल सूर्य की किरणे अनूप
छनछन कर आती धूप
वृक्षों की टहनियों को छू कर
करती आल्हादित तन मन |
निमंत्रित करतीं वहां आने को
मन बावरे को सवारने  को 
एक खिचाव सा होता 
अजीब लगाव सा होता |
फिर से पहुँच जाती
 कल्पना जगत में 
खो जाती सुरम्य वादी की
 उन रंगीनियों में |
कभी लम्बी कभी छोटी
 छाया वृक्षों की  
देती संकेत
 विविधता पूर्ण  जीवन की |
कहीं ऊंची कहीं नीची सड़क
 दिखाती जिन्दगी में
आते उतार चढ़ावों   को  

जीवन के संघर्षों को  |
प्रकृति के कण कण से यहाँ
मिलती रहती   शिक्षा हर पल
इस क्षण को जी भर कर जी लो
कल की किसको खबर
आशा