27 अगस्त, 2016

तलाश अभी बाक़ी है

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साँसों पर पहरा लगा है
जिन्दगी की तलाश बाक़ी है
आशा निराशा में झूलता मन
सत्य की तलाश अभी बाक़ी है
जहर तो मिल ही जाता है
अमृत की तलाश अभी बाक़ी है
कौन अपना कौन पराया
यही तो जानना है
गैरों  की भीड़ लगी है
अपनों को पहचानना है
इल्जाम न देना बाद में कि
वफ़ा हमने नहीं की
हर वार आपने किया था
हमने तो बचाव किया था
हम तो हम हैं
हैं सब से जुदा
किसी का अक्स नहीं
 मिलावट की बू नहीं
जिन्दगी की राह में
यूं ही नहीं फ़ना हुए हैं 
हर सांस का हिसाब लेना है 
जीवन की आस अभी बाक़ी है |
आशा
 

24 अगस्त, 2016

जन्माष्टमी -हाईकू

  मथुरा जी में 
जन्म लिया कान्हा ने
कारागार में |

आधी रात में 
स्वतः खुले कपाट 
कान्हा के लिए |

नन्हें कान्हा को 
वासुदेव ले चले 
गोकुल धाम |

हो गईं धन्य 
पा कर कन्हैया को 
माता यशोदा |


 मटकी फोड़ी
दूध दही खा कर 
की बाल लीला |

बंसी बजाई 
गोपियों को रिझाया 
भोले कान्हा ने |

मंगल गाओ
जन्म लिया कान्हा ने
है जन्माष्टमी |

आशा







23 अगस्त, 2016

क्यों




राह क्यों नहीं दिखाई देती
अनगिनत बाधाएं आतीं
जब भी आगे आना चाहूँ
पीछे से क्यों रोक लेतीं
क्यों हैं बाधाओं का अम्बार
जिनकी नहीं रहती दरकार
क्यों हूँ वंचित खुशियों से
क्या यही लिखा है प्रारब्ध में
क्यों हैं दुनिया संकुचित
केवल मेरे लिए
क्यों बैर सभी रखते हैं मुझसे
कारण खोजना है कठिन
पर खोज अवश्य है जारी
कभी तो कारण मिलेगा
क्यों का भूत सर से उतरेगा |
आशा

21 अगस्त, 2016

हाईकू




धूमिल हुई
इवारत प्यार की
पढ़ी न गई |

मन मंदिर
तन का है पिंजरा
किसको चुने |


सारी अदाएं
बचाईं तेरे लिए
तुझे रिझाएँ |

है पुजारिन
वह तेरी छबि की
तूने न जाना |

गीत प्यार के
लगते मीठे बोल
आया सावन |

झूला झूलती
है बहिनभैया की
है तीज आज |

आशा

18 अगस्त, 2016

खुशबू


खुशबू अनोखी के लिए चित्र परिणाम

भीनी भीनी सी सुगंध
जैसे ही यहाँ आई
तुम्हारे आने की खबर
यहाँ तक ले आई
हम जान लेते हैं
तुम्हें पहचान लेते है
अनोखी सुगंध है
अनोखा एहसास है
हजारों में भी
सब से अलग
तुम लगती हो
यही खुशबू बन गई है
परिचय तुम्हारी
उसके बिना तुम
अधूरी सी लगती हो
वह भीनी खुशबू
तुममें समा गई है
तुम्हारे जाने के बाद भी
कुछ समय महक
बनी रहती है
यही महक
प्रफुल्लित कर जाती है
तुम्हारी उपस्थिति
दर्ज करा जाती है |
आशा



16 अगस्त, 2016

न जाने क्यूं



आज न जाने क्यूं
एकांत की चाह में
बहुत दूर निकल आई
रंगीनिया वादियों की
यहाँ तक खींच लाईं
विविध रंगों की झांकी
देख आँखें नहीं थकतीं
मन लौटने का न होता
वहीं ठहरना चाहता
यह बड़ा सा पुल
और पास की हरियाली
आगे की राह नहीं सूझती
पर व्योम की छटा ने
कमी पूरी करदी
नीली चादर ओढ़ धरा
अधिक ही प्यारी लगती |
बड़ा पुल हरियाली के बीच के लिए चित्र परिणाम
आशा