25 मई, 2018
24 मई, 2018
उफ यह मौसम गर्मीं का
उफ यह जेठ का महीना
तपता सूरज दरकती धरा
उफ ! यह मौसम गर्मी का
औरबिजली की आँख मिचौली
बेहाल कर रही है
मति भी कुंद हो रही है
यदि कोई काम करना भी चाहे
बिना रोशनी अधूरा है
दोपहर की गर्म हवा
कुछ भी करने नहीं देती
सारा दिन बोझिल कर देती
बिना लाईट के आये
ऐ .सी . भी काम नहीं करता
कूलर की बात करें क्या
जब भी उसे चलायें
सदा गर्म हवा ही देता
केवल बेचैनी ही रहती है
नींद तक अधूरी है
आकाश में यदि बादल हों
उमस और बढ़ जाती है
घबराहट पैदा कर जाती है
कहाँ जायें क्या करें
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
इतना अधिक तपता मौसम
जिससे बचने का उपाय
नज़र नहीं आता
पर इस ऋतु चक्र में
गर्मी बहुत ज़रूरी है
इसके बाद ही बारिश आती है
चारों ओर हरियाली छाती है
मन हरियाली में रम जाता है
उत्साह से भर जाता है
फिर से हल्का हो जाता है |
आशा
औरबिजली की आँख मिचौली
बेहाल कर रही है
मति भी कुंद हो रही है
यदि कोई काम करना भी चाहे
बिना रोशनी अधूरा है
दोपहर की गर्म हवा
कुछ भी करने नहीं देती
सारा दिन बोझिल कर देती
बिना लाईट के आये
ऐ .सी . भी काम नहीं करता
कूलर की बात करें क्या
जब भी उसे चलायें
सदा गर्म हवा ही देता
केवल बेचैनी ही रहती है
नींद तक अधूरी है
आकाश में यदि बादल हों
उमस और बढ़ जाती है
घबराहट पैदा कर जाती है
कहाँ जायें क्या करें
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
इतना अधिक तपता मौसम
जिससे बचने का उपाय
नज़र नहीं आता
पर इस ऋतु चक्र में
गर्मी बहुत ज़रूरी है
इसके बाद ही बारिश आती है
चारों ओर हरियाली छाती है
मन हरियाली में रम जाता है
उत्साह से भर जाता है
फिर से हल्का हो जाता है |
आशा
21 मई, 2018
रमजांन
रमज़ान
आया पाक महीना रमज़ान
का
अल्लाह के बहुत करीब
होने का
इस माह में इबादत
सच्चे मन से
कठिन व्रत के द्वारा
करते
अपने गुनाहों की
माफ़ी माँगते
आत्म निरीक्षण करते
सत्य का मार्ग चुनते
खुद मूल्यांकन अपना
करते
आदर्श जीवन शैली के
लिए
पालन करते गंभीरता से नियमों का
है ऐसा सोच कि
पवित्र कुरआन शरीफ़ का बड़ी शिद्दत से
इस माह में नियमित पाठ होता
पूरा माह बटा होता
दस दस दिन के टुकड़ों में
दोज़ख़ के द्वार इस माह में रहते बंद
जन्नत के दरवाज़े खुले रहते
जिन पर होती मेहर अल्लाह की
वे उसकी नेमत भरपूर पाते
ग़रीबों को भोजन करवाते
जितना संभव हो मदद
करते
पाँचों समय की नमाज़
अता कर
अपने फ़र्ज़ पूरे करते
आया पावन महीना
रमज़ान का
रहता बेसब्री से इन्तजार ईद
का
बच्चों को मिलने
वाली ईदी का
बैर भाव भूल कर आपस
में भाईचारे का |
आशा
19 मई, 2018
ख्वाब यूं. मचलते हैं
आजकल निगाहों में
ख्वाब यूं मचलते हैं
यादों का सैलाव सा आता है
उनसे निजात पाना
आसान नहीं होता
जैसे बड़े बेमन से कोर्स की
किताब के पन्ने पलटना
होता कठिन काव्य का प्रेत
निगाहों की हलचल
इस हद तक बढ़ जाती है
अपलक निहारते रहते हैं
पुरानी यादों में खोए रहते है
सपने तो कई आते है
पर याद नहीं रहते
कुछ याद रह जाते हैं
कुछ भूल नहीं पाते
नयनों में समाए रहते हैं
यह तो वही कर सकते हैं
जो दिवा स्वप्न में
रहते व्यस्त
हलचल से यादें
गहरे पैंठ जातीं हैं
निकलना नहीं चाहतीं
तभी तो आजकल निगाहों में
ख्वाब यूं ही मचलते रहते हैं |
आशा
16 मई, 2018
वह जन्नत की हूर
एक झलक देखा उसको
मन मोह कर चली गई
सहज सरल पुरनूर चेहरा
मन मोह कर चली गई
सहज सरल पुरनूर चेहरा
जैसे हो चाँद का टुकड़ा
जमाने की बुरी नजर से
उसे महफूज रखते
पर जमीन पर पैर न पड़ते
बड़ा गर्व महसूस करते
अल्लाह की नियामत समझ
उस जन्नत की हूर का
दूर दूर तक चर्चे
उसकी सुन्दर छबि के होते थे
मशहूर हुई नजाकत के लिए
मोहक अदाओं के लिए
पर मद के नशे से कोसों दूर
लेकिन नहीं मगरूर |
आशा
जमाने की बुरी नजर से
उसे महफूज रखते
पर जमीन पर पैर न पड़ते
बड़ा गर्व महसूस करते
अल्लाह की नियामत समझ
उस जन्नत की हूर का
दूर दूर तक चर्चे
उसकी सुन्दर छबि के होते थे
मशहूर हुई नजाकत के लिए
मोहक अदाओं के लिए
पर मद के नशे से कोसों दूर
लेकिन नहीं मगरूर |
आशा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)