21 सितंबर, 2018

मजबूरी




बचपन खेल रहा है
बचपन की गोद में
 नव वस्त्र  धारण किये है
पुराने उतरन समझ कर
दे दिए है दान में |
पर तुझे तो यही
नियामत लगते है
तन तो ढक  जाता है
बचाव हो जाता  है इनसे
 मौसम की मार से |
पेट तो भर ही जाता है
दिए गए टुकड़ों से |
पर क्या करें मजबूती है
मजदूरी भी जरूरी है
धर चलाने के लिए
मन पर नियंत्रण रख
सभी कुछ सहना पड़ता है
बाह री तकदीर
किससे शिकायत करें |

आशा


18 सितंबर, 2018

तृष्णा



इस जिन्दगी के मेले में
अनगिनत झमेले हैं
माया तृष्णा मद मोह
मुझे चारो ओर से घेरे हैं |
ममता का आँचल
सर पर से हटते ही
घरती पर आ कर गिरी
तभी सच्चाई के दर्शन हुए |
दुनियादारी में ऐसी उलझी
माया मोह में लिप्त हुई
जैसे तैसे मन पर किया नियंत्रण
इन से छुटकारा पाने के लिए |
पर तृष्णा से पार न पाया
ज्यों ज्यों किया संवरण
इसका मुंह बढ़ता गया
सुरसा के मुख सा |
खुद पर कितना करती नियंंत्रण
अंत हीन राह पर चलते
हारी थकी प्रभु तेरी शरण में आई
तृष्णा से फिर भी खाई मात |
उससे जीत न पाई
जितनी दूरी बनाती उससे
फिर वहीँ खुद को पाती हूँ
बस यहीं हार  जाती हूँ |


आशा