20 नवंबर, 2018

रूमानी






यूँ तो हैं
साधारण से  नयन नक्श
पर दिल है बहुत रूमानी
यह  बात कम ही जानते हैं
जो जान जाते हैं
हो जाते हैं कायल उसके
हंसी उसकी ओंठों में सिमटी है
जब मुस्कुराती है फूल झरते हैं
नयनों में जल छलक आता है
बहुत नजाकत से उसे पौंछती है
 तन से तो नही सुन्दर 
मन से रूमानी है
उसकी यही अदा बहुत रूहानी है
 उसके जैसा मन किसी का नहीं
अनोखा अंदाज चलने का
कमर तक लम्बी चोटी
लहरा कर साथ चलती है
मुखड़े पर लटकी
 काकुल चूमती है उसे
रूप की आव बढाती है
है बहुत रूमानी 
सभी के मन में बस जाती है |
आशा
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19 नवंबर, 2018

नादानी



नन्हों की नादानी
मन में बसी रहती
पर क्रोध न दिलाती
जब तब हँसी आ जाती |
जब ऎसी नादानी
 कोई बड़ा करता
 मन पर प्रहार होता
असभ्य कहलाने लायक होता |
उसे नादाँ न कह पाते
आदतन की गई हरकतें
अक्षम्य होतीं सह न पाते 
उसे क्षमा न कर पाते |
 नादानी अनजाने में होती
जब जान बूझ कर की जाती
सजा योग्य हो जाती
एक बार यदि अनदेखा किया
बार बार दोहराई जाती |
जब आदत में शुमार हो जाती 
देती सदा दुःख जीवन में 
शर्म से सर झुकते  जाते 
पर सुधर न पाते |
                                     आशा

हाईकू

१-आँखों में आंसू
मन में होता दुःख
जान न सका
२-अपना होना 
पहचान की चाह
नहीं दीखती
३-पत्थर कांटे
आते जाते पैरों में
चोट करते
४-नासूर बन
जीना दूभर होता
जब पकता
५-आगत कहे 
स्वागत करो न 
मन न होय 
                                                                               आशा

18 नवंबर, 2018

गम और हम








कौन कहता है कि
हमने गम नहीं देखा
हमने बहुत गम खाया है
हर बात पर पलटवार न करके
मन को समझाया है |
सही क्या और गलत क्या
बिना सोचे समझे किया समझौता
सभी उलझनों से
किसी को कुछ नहीं कहने का
अवसर प्रदान किया
तभी कह पाते है शान से कि
हम ने बहुत गम खाया है
मर मर कर जिए हैं
जीने के न कोई अरमां रहे  शेष
उसे ही  दिल से  अपनाया है
हमने गम से रिश्ता जोड़ा है
उसे यूँही नही छोड़ा है
अपना हमदम उसे बनाया है |
आशा



15 नवंबर, 2018

अतिथि हो कर रह गए हैं हम



अपने ही घर में
अतिथि हो कर  रह गए हम
साथ रहेंगे साथ ही चलेंगे
किया कभी वादा था
पर झूटा निकला
समय के साथ चल न सके
आधुनिकता की दोड़ में
बहुत पिछड़ गए हम
अक्सर यही सुनने को मिलता
सोच बहुत पुरानी हमारी
यदि साथ समय के
न चल पाए
लोग क्या कहेंगे ?
कल्पना थी
एक छोटे से घर की
मिलजुल कर
एक साथ रहने की
मिल बांट कर
सुख दुःख सहने की
कभी सच न हो पाई
सब ने साथ छोड़ा
खड़े हैं विघटन के कगार पर
आज के संदर्भ में
कोई नहीं अपना
अतिथि बन कर रह गए हैं
अपने ही घर में
ना खुद का अस्तित्व  है
हर बार दूसरों की सलाह
पर चलने को बाध्य
जो कभी अपने कहलाते थे 
हुए बहुत दूर दराज के
खुद का वजूद  ही
कहीं खो गया है
रिश्तों की दूकान लगी है
पर कोई न अपना
सच्चे अर्थों में
भीड़ में अकेले खड़े हैं
घर में हमारे लिए
कोई जगह नहीं है |


आशा