12 अप्रैल, 2020

समय का अभाव न हो जब




 

 था लंबा  अवकाश ऑफिस जाना न था
बैठे बैठे उकता  रहा था  
कोई काम नजर नहीं आ रहा था
सोचा देखूं चौके में क्या हो रहा है ?
देखा सिंक का नल खुला था
बरतन जल से आपस में होली खेल रहे थे
एक कढ़ाई बहुत गंदी थी
सोचा क्यूँ न इसे साफ कर दूं
कुछ तो समय का सदउपयोग करू
 ऐसे तो समय नहीं मिलता
 व्यस्तता भरी जिन्दगी में
 जीवन की आपाधापी में
 समय का  अभाव सदा रहता 
मैंने उसे उठाया तेज  गर्म किया  
पानी और सर्फ लिया
स्काच ब्राईट से पूरा दम लगा कर रगड़ा
चमकाया उसे पूरे मनोयोग से 
कहा उनसे  देखो कैसे चमक रही है
 मानो है सध्य स्नाना मुस्कुराती  युवती
लौट  आया है योवन उसका
पर अन्य बर्तन भी  देख रहे थे यह मंजर
उनका प्रश्न था यह भेदभाव क्यूँ  ?
मैं अकेला इतना सब नहीं कर पाता 
बाई को भी न आना था 
असमंजस में था क्या करूं
पत्नी से मांगी सहायता
  उसका साथ पा
 बर्तनों की सफाई  का कार्य  सम्पन्न किया
 थे वे बहुत खुश  चमचमा रहे थे
अपने को नया नवेला जान
  दुआएं दे रहे थे 
आपस में चर्चा कर रहे थे |
जानना चाहोगे क्या कह रहे थे ? वे कह रहे थे
 “जैसे  जीवन पर्यंत साथ निभाने का वादा
 कियी है तुमने अपनी जीवन संगिनी से  
हमारा भी वादा है तुमसे जब तक जियेंगे
 तुम्हारा साथ निभाएंगे पूरी शिद्दत से
कभी न वादा तोड़ेगे अपनी  कसम से” |
आशा

एकता



 

एकता –
खिंच रही  थी घर में दीवार |पर बटवारा होता कैसे संभव |अचानक बटवारा  रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था  तब |एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे |
उस दिन सच्चाई सामने आई |घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से आश्रित थे | बिलकुल असमर्थ
कोई काम न कर पाते थे |बुढापे से जूझ रहे थे |प्रश्न था कौन उन्हे सम्हाले ?तब एक ने सलाह दी थी क्यूँ न इन्हें वृद्ध आश्रम में पहुचा दें |मिल कर आ जाया करेंगे |पर छोटे का मन नहीं माना |बात वहीं समाप्त हो गई थी तब |
तब से रोज लड़ाई होती थी उन की देखरेख  के लिए |जब अति हो गई फिर से बटवारे की बात उठी |दरार दिलों में और बढ़ी  |ललक अलग  रहने  की जागी| फिर बात वहीं आकर अटकी उनकी देखरेख कौन करे ?
अचानक कोरोना का कहर की दहशत से न उबार पाए आसपास के एकल परिवार | पर उनके परिवार में एकता रंग लाई एक दूसरे की  मदद से कठिन समय से उभरने की शक्ति काम आई |
     सभी ने वादा किया अब अकेले रहने की कभी न सोचेंगे |एक साथ रहेंगे कठिनाई का सामना आपसी समन्वय से  बहादुरी से करेंगे |
                     आशा     

11 अप्रैल, 2020

वह अकेली





                                      दूर देश से आई चिड़िया
बसेरे की तलाश में
 पर कठिन मार्ग में भटकी
समूह से अलग हो कर |
सब से बिछड़ कर
थी उदास पाकर अकेला खुद को
इस अजनबी दलदल में
अब सब  की याद सता  रही थी |
ऊपर आसमान विशाल
उड़ने की ताकत न रही
 थक गई  थी चाहती थी विश्राम |
नीचे कीचड़ दलदल में
न जाने हो कितनी गहराई उसमें
दोनो ओर जा नहीं सकती
अपनी जान बचा नहीं सकती |
फँस गई है संकट में
किसे चुने व्योम को या दलदल को
एक ओर कुआ  दूसरी ओर है खाई  |
एक वृक्ष के सहारे
 कब तक रहेगी वहां
यूँ भी है अकेली
कैसे बिताएगी जीवन यहाँ |
जब तक रही झुण्ड में
तब भी थी नाराज
ज़रा ज़रा सी बात पर
रूठ जाती थी क्रुद्ध हो जाती ही |
 ईश्वर ने देखा है 
असंतुलित  व्यवहार उसका
सुधरने के लिए ही  ऐसी
नसीहत दी है उसको |
अपनी  दुनिया से हुई दूर अब
 पछ्ता कर अपने में सुधार ला रही है
 पर बहुत देर  हो चुकी है  अपनों से दूर हुए 
 है उसका अंत यहीं अब तो  |
आशा